For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझे जो कहना है कहूँगा
तुम चाहे जो सजा दो
छड़ी मार या तड़ी पार
फिर भी कहूँगा बारम्बार.
क्यों सपने दिखाते हो?
अपनी बातों में उलझाते हो
देश अब कराह रहा है
फिर भी तुम्हे सराह रहा है .
सपनों के साकार होने का
वख्त शायद आ गया है
अच्छे दिन कब आएंगे?
हर  जेहन में आ गया है.
जिस उंगली ने वोट किया
वो अब उठने लगी है,
शायद तुन्हारी इक्षाशक्ति
तुमसे रूठने लगी है.
कुछ करो न चमत्कार
जिसे जनता करे स्वीकार
फिर होगी जयकार.

विजय प्रकाश
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 692

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on December 3, 2014 at 9:45pm

श्री राम शिरोमणि पाठक जी, आपने रचना को सराहा,अपना मंतव्य दिया, हार्दिक आभार.

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on December 3, 2014 at 9:45pm

आ० गिरिराज भाई,
आपका हार्दिक आभार .

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on December 3, 2014 at 8:41pm

आ० शरदेन्दु जी,
आपका स्वागत.आपने इस रचना के माध्यम से साहित्य में राजनीति की झलक देखी , बहुत आभार.
साहित्य समाज का दर्पण होता है और साहित्यकार की भूमिका सचेतक की होती है.इस रचना पर पुनः गौर करें ,इसमें लोगों के अंदर उठने वाले संशय से सचेत किया गया है- दोषारोपण नहीं.मैं स्वयं नेतृत्व के प्रत्येक गतिविधियों से अवगत रहता हूँ उन्हीं के द्वारा भेजे गए मेल और संदेशों से. पीएमओ इंडिया पर. इसे अन्यथा न लें और साहित्य की सचेतक विधा का एक अंश समझें. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 2, 2014 at 10:15pm
आदरणीय, आप स्वयं वरिष्ठ हैं और विद्वतजनों ने आपको सराहा है...मैं क्या कह सकता हूँ!!! फिर भी अनुमति दें तो कहना चाहता हूँ कि आपकी रचना के पीछे राजनैतिक इंगित सुस्पष्ट है...रचना के साहित्यिक मूल्यांकन के लिए मैं क़ाबिल आदमी नहीं हूँ. रचना के माध्यम जो इंगित हुआ है उसी के संदर्भ में निवेदन है कि मई से नवम्बर इन सात महीनों में क्या-क्या सकारात्मक काम हुए उनपर दृष्टि डालें तो लॉजिकल होगा. हम आप इतने शिशु भी तो नहीं कि हमें ख़बर न हो किन हालात में आज के नायक ने बागडोर सँभाला. थोड़ा समय तो देना ही पड़ेगा....मंच पर जादू दिखाना नहीं है देश चलाने का गम्भीर मामला है....बच्चे अधीर हो उठते हैं वह उनका स्वभाव है....वयस्क बेताबी दिखाएँ तो कैसे काम बनेगा?????सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2014 at 9:27pm

आदरणीय विजय भाई , वर्तमान स्थिति पर बढ़िया रचना की है , दिली बधाई !

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2014 at 1:07pm

आदरणीय बहुत सुन्दर रचना //बधाई आपको 

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on December 1, 2014 at 11:32am

आपने रचना के भाव को विस्तार दे दिया.आपका बहुत अभिनन्दन आ ० डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी.सादर.
जी , जिसने चुनकर भेजा है वह जनता ही उतार सकती है.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 1, 2014 at 10:22am

हमेशा सारा देश कहता ही तो है पर ----

ऊपर वाला दुखियो  की नाही  सुनता रे ---- कौन् है  जो उसको संसद  से उतारे

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on December 1, 2014 at 10:18am

आ ० भाई गणेश जी,
रचना आपकी रुचि के अनुसार लगी, स्वीकृति के लिए बहुत आभार. स्नेह बनाये रखें.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 30, 2014 at 4:33pm

//जिस उंगली ने वोट किया
वो अब उठने लगी है,
शायद तुन्हारी इक्षाशक्ति 
तुमसे रूठने लगी है.//
बहुत खूब आपने आइना सामने रख दिया, बधाई इस कविता पर आदरणीय विजय प्रकाश जी। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service