For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आग लगाते वो कुछ इस तरह जो धुआँ तक नहीं होता(ग़ज़ल 'राज')

२११२ २१२२  १२२१  २२१२ २२

लोग हुनरमंद कितने किसी को गुमाँ तक नहीं होता

आग लगाते वो कुछ इस तरह जो धुआँ तक नहीं होता

 

जह्र फैलाते हुए उम्र गुजरी भले  बाद में उनकी

मैय्यत उठाने कोई यारों का कारवाँ तक नहीं होता

 

आज यहाँ की बदल गई आबो हवा देखिये कितनी

वृद्ध की माफ़िक झुका वो शजर जो जवाँ तक नहीं होता

 

मूक हैं लाचार हैं जानवर हैं यही जिंदगी इनकी  

ढो रहे हैं  बोझ पर दर्द इनका बयाँ तक नहीं होता

 

 ख़्वाब सजाते सदा आसमां पर महल वो बनायेंगे

 दिल की जमीं पर मुहब्बत भरा आशियाँ तक नहीं होता

 -------------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 910

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 14, 2015 at 10:35am

आ० डॉ. आसुतोष जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका|  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 30, 2014 at 3:25pm

आदरणीया राजेशजी ..सन्देश देती उम्दा ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 12, 2014 at 7:03pm

आ० योगराज जी,तहे दिल से आभार आपका ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ|  


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 10, 2014 at 11:21am

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० राजेश कुमारी जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2014 at 5:33pm

आ० विजय निकोर जी,इस उत्साह वर्धन के लिए तहे दिल से आभारी हूँ सादर.  

Comment by vijay nikore on December 4, 2014 at 4:23pm

//ख़्वाब सजाते सदा आसमां पर महल वो बनायेंगे

 दिल की जमीं पर मुहब्बत भरा आशियाँ तक नहीं होता//

खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2014 at 10:09am

आ० योगराज जी,ग़ज़ल फीचर करने के लिए दिली आभार मेरे लेखन को सार्थकता मिली सादर.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2014 at 10:08am

आ० गिरिराज जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ तहे दिल से आभार | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2014 at 3:54pm

आदरणीया राजेश जी , बढ़िया बात कही है गज़ल के ज़रिये , बहुत खूब ! दिली बधाइयाँ !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 2, 2014 at 8:11pm

प्रिय रामशिरोमणि पाठक जी,आपकी प्रतिक्रिया दिल से स्वीकार मेरी लेखनी को संबल मिला बहुत बहुत शुक्रिया.  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
8 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service