For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बिन कहा समझते हैं कमाल है (ग़ज़ल 'राज')

212   122   212  12

बिन कहा  समझते हैं कमाल है

क्या से क्या समझते हैं कमाल है

 

मैं मना करूँ तो हाँ जो हाँ करूँ   

तो मना समझते हैं कमाल है

 

शर्म से निगाहें जो  झुकी मेरी  

वो अदा समझते हैं कमाल है

 

कद्र मैं करूँ जज्बात की जिसे     

वो वफ़ा समझते हैं कमाल है

 

 चूड़ियाँ बजें मेरी ये आदतन  

 वो सदा समझते हैं कमाल है

 

 झाँकते वो मेरी आँखों के निहाँ           

 आईना समझते हैं कमाल है

 

सुर्ख देख आँखें नींद से मेरी

वो नशा समझते हैं कमाल है

 

प्यार मर्ज़ दिल का दर्द है फ़कत  

वो दवा समझते हैं कमाल है

 

इश्क या मुहब्बत को मैं इक फितूर  

वो ख़ुदा समझते हैं कमाल है

-------------------------

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 955

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2015 at 7:10pm

आ० धर्मेन्द्र जी,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति एवं दाद उत्साह वर्धन कर रही है,मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2015 at 7:08pm

गोपाल मौर्या जी,तहे दिल से आभार आपका . 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 18, 2015 at 11:56am

अच्छी ग़ज़ल हुई है राजेश कुमारी जी। दिली दाद कुबूल करें।

Comment by Gopal Maurya on February 17, 2015 at 1:59am

सार्थक ....सुमधुर एवं अतुलनीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2015 at 6:02pm

आ० डॉ०  आशुतोष जी,आप जैसे गंभीर रचनाकार से दाद पाना ग़ज़ल के लिए सौभाग्य की बात है मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभार आपका | 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 3:07pm

आदरणीया राजेश जी ..आज तो मैं बस इतना कहोंगा की ये रचना तो बस कमाल है कमाल .कमाल कि इस रचना पर आपको तहे दिल बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 30, 2015 at 11:44am

ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया देख दिल खुश हो गया भले ही ....देर आयद दुरस्त आयद ...ये बहुत बार होता है व्यस्तता के कारण सभी रचनाएँ नहीं पढ़ पाते जिसका अफ़सोस भी होता है| आप जैसे गंभीर रचनाकार से दाद पाना रचना का सौभाग्य है दिल से आभार आपका | 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 29, 2015 at 8:21pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, बहुत सी सुन्दर रचनाएं अपठनीय रह जाती हैं कई बार ,कभी काम ,कभी घर से बाहर ,आज ध्यान गया , बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने .....

सुर्ख देख आँखें नींद से मेरी

वो नशा समझते हैं कमाल है....सम्पूर्ण रचना सुन्दर है , हार्दिक बधाई ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 28, 2015 at 10:09am

प्रिय सीमा जी, आपसे दाद पाकर ग़ज़ल मुकम्मल हो गई इस उत्साह्मयी प्रतिक्रिया के लिए दिल से बहुत- बहुत आभार आपका. 

Comment by seema agrawal on January 27, 2015 at 8:40pm

बहुत  खूब  राजेश  जी  सारे कमाल  पसंद आये  पर इस कमाल  का जवाब नहीं 

बिन कहा  समझते हैं कमाल है

क्या से क्या समझते हैं कमाल है

 

मैं मना करूँ तो हाँ जो हाँ करूँ   

तो मना समझते हैं कमाल है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
15 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service