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वक्त और मुझमे लडाई है

२१२२ २१२२ २१२२ २

बादे मुद्दत फिर मुझे वो याद आयी है!
फिर किसी ने फूल से तितली उडाई है!!

फिर चुभा है दिल में मेरे याद का कंकड!
फिर से उसने आतमा मेरी दुखाई है!!

इसमें उसकी कुछ ख़ता ना है जमाने सुन!
दरअसल इस वक्त और मुझमें लडाई है!!

राख बनकर उड गये दिल जाँ जिगर अरमाँ!
इस तरह उसने मेरी चिट्ठी जलाई है!!

देख ली सारी ये दुनिया और खुदा को भी!
इस जहाँ में सिर्फ़ अपना अपनी माँई है!!

फेंक डाला दिल मेरा उसने गुमां है यह!
सच तो ये है मेरे ही इस दिल को काई है!!

सबसे ज्यादा विषभरी जहरीली ऐ'राहुल'!
उस सितमगर जादुगर की दिलरुबाई है!!


मौलिक व अप्रकाशित
राहुल दांगी
जन्म तिथि-०९-०१-१९९२

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 12:02am

बादे मुद्दत फिर मुझे वो याद आयी है!
फिर किसी ने फूल से तितली उडाई है!!- बहुत खूब 

फिर चुभा है दिल में मेरे याद का कंकड!
फिर से उसने आतमा मेरी दुखाई है!! -----वाह 

इसमें उसकी कुछ ख़ता ना है जमाने सुन!--- कुछ खता उसकी नहीं इसमें जमाने सुन 
दरअसल इस वक्त और मुझमें लडाई है!!---- दरअसल अब वक्त से  मेरी लडाई है

राख बनकर उड गये दिल जाँ जिगर अरमाँ!
इस तरह उसने मेरी चिट्ठी जलाई है!! ---- वाह वाह 

बहुत अच्छी रचना . बहुत बहुत बधाई 

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