नया कहूँ तो, वैसे तो हर पल होता है
नया जागता तब है जब पिछला सोता है
पर सोचो तो नया , नये में क्या होता है
हर पल पिछला, आगे को सब दे जाता है
आने वाला नया, नया कब रह पाता है
वही गरीबी , भूख , वही है फ़टी रिदायें
वही चीखती मायें , जलती रोज़ चितायें
वही पुराने घाव , वही है टीस पुरानी
वही ज़हर, बारुद, धमाका रह जाता है
आने वाला नया, नया कब रह पाता है
वही अक़्ल के अंधे , जिनके मन जंगी हैं
वही बांटते नफरत सारे आतंकी हैं
वही बात में शांति, होड़ है हथियारों की
स्वेत कबूतर ऐसे में कब उड़ पाता है
आने वाला नया, नया कब रह पाता है
कब तक पतझड़ झेलें, कब तक आस रखें हम
पागल बाग उजाड़े , औ मधुमास तकें हम
खुद से लड़ के झड़ते पत्ते सिर्फ लखें हम
पत्तों का विद्रोह वृक्ष कब सह पाता है
आने वाला नया, नया कब रह पाता है
ऐसे में किस पल को बोलो नया कहूँ मैं
जब हर नव-पल वही पुराना दर्द सहूँ मै
कब तक भीतर-भीतर, कितना और दहूँ मै
नव वर्ष बधाई दिल मेरा न दे पाता है
आने वाला नया, नया कब रह पाता है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय जवाहर भाई , गीत की सराहना के लिये आपका दिली आभार
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय श्री गिरिराज भंडारी जी!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। शीर्षक ने ही मोह लिया। और फिर......
//कब तक पतझड़ झेलें, कब तक आस रखें हम
पागल बाग उजाड़े , औ मधुमास तकें हम
खुद से लड़ के झड़ते पत्ते सिर्फ लखें हम
पत्तों का विद्रोह वृक्ष कब सह पाता है// ............. कितना सच !
हार्दिक बधाई।
आदरणीय खुर्शीद भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया । आने वाले नये साल की आपको भी बधाइयाँ ।
आदरणीययोगेन्द्र भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
वही अक़्ल के अंधे , जिनके मन जंगी हैं
वही बांटते नफरत सारे आतंकी हैं
वही बात में शांति, होड़ है हथियारों की
स्वेत कबूतर ऐसे में कब उड़ पाता है
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब |सभी बंध अच्छे है |शायद नया कुछ नया लेकर आये ,इसी आस में आपको नववर्ष की शुभकामनाएं वर्तमान हालात में उपजी निराशा को आपने सबल स्वर दिया है |सादर अभिनन्दन
प्रिय अनुज सोमेश , स्नेहिल सराहना के लिये बहुत आभार ।
आदरणीय शिज्जु भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका दिली शुक्रिया ।
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , गीत आपका आशीष पा प्रफुल्लित है । स्नेहिल सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
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