“ मास्टर जी ,अपने दोस्त से पूछिए अगर मेरे लिए कोई जगह हो तो थोड़ी सिफारिश कर दे |” जब विजय मुझसे ये बात कहता है तो मेरे मन में उसके लिए नैसर्गिक साहनभूति फूटती है |मैं पहले से उसकी नौकरी को लेकर फिक्रमंद हूँ और पहले ही कई दोस्तों से उसके बारे में बात कर चुका हूँ |
कुछ लोग होते हैं जो चुम्बक की तरह अपनी तरफ खींचते हैं |विजय में मुझे वही चुम्बकत्व महसूस होता है | गोरा वर्ण ,5”6’ का कद सुघड़ अंडाकार चेहरा ,घुंघराले काले बालों के बीच में कहीं-कहीं सफ़ेद हो गए बाल ,आत्मीयता और उचित मिठास से भरी बोली और तमाम मुश्किलों के बाद भी जीवन जीने की ललक और अपने शौक को पूरा करने की प्रबल ईच्छा ,उसके व्यक्तित्व के वे पक्ष हैं जो उसे चुम्बकीय बनाते हैं |
“मास्टर जी ,ये नोकिया लुमिया बेच कर कोई नया फ़ोन ले रहा हूँ |” जब वो कहता है तो आश्चर्य होता है कि क्या वो अपनी स्थिति के प्रति संजीदा है! क्या वो एक जिम्मेवार पिता और समझदार पति हो गया है ? या उसमें अभी भी फक्कड़पन और आज़ाद परिदों वाली ,पचीस साल से कम-उम्र युवकों वाली ललक जिंदा है |वैसे अभी वो सिर्फ 25 साल का ही है और महानगरीय लिहाज़ से अभी छोटा ही कहा जाएगा |
कहने को वो सिर्फ मेरा पड़ोसी है |पर मुझे वो छोटा भाई और घनिष्ठ मित्र लगता है |सबसे बड़ी बात वो एक अच्छा इन्सान भी है |उम्र में बेशक वो मुझसे पांच साल छोटा हो परंतु ईन्सानियत में और मर्दानगी में वो मुझसे कहीं बड़ा कद रखता है |जो फैसला उसने लिया ,जिस त्याग का परिचय उसने दिया ,वो सबके बूते की बात नहीं | एक साल तक विदुरावस्था झेलने के कारण और अपनी अवस्था के बाद भी किसी विधवा या तलाकशुदा के प्रति भावनात्मक लगाव ना महसूस करने के बाद ये बात में ताल ठोक कर कह सकता हूँ | हमारा समाज कितना भी आधुनिक हो गया हो पर स्त्री अभी भी ‘भोग्या’ या एकाधिकार की वस्तु समझी जाती है |पुरुष स्त्री की गंध और मांसलता के लिए जीभ लपलपाए फिरते हैं |परंतु जब किसी स्त्री से विवाह का प्रश्न हो तो वे सती-सावित्री चाहते हैं स्त्री की यौनिकता अभी भी उसकी परिष्कृति की माप है |कई नए विवाह केवल इसलिए टूट जाते हैं क्युकी प्रथम-रात्रि में पत्नी से पुरुष को वो अहसास नहीं मिलता |मौक़ा मिलने पर पराई थाली में मुँह लगाने में उसे परहेज़ नहीं है पर परोसी गई थाली में जूठन की हल्की सी बू भी असहनीय है |यही कारण हैं की महानगरों और छोटे कस्बों में इस तरह की सर्जरी और दवाईयों की मांग बढ़ रही है |
भाभी या पराई स्त्री से परिहास विनोद करना या उनके साथ बहक-बहकाकर शारीरिक सुख भोगना अलग बात है |परंतु जिस स्त्री से आप चिढ़ते हों उस पर अचानक वज्रपात होने पर आप उसके सुमेरु बन जाएँ और अपना सब कुछ दांव पर लगा दें तो आप असली मर्द हैं |उसके कमरे की आलमारी में आज भी सी.ए. का वो फार्म ,C++ की किताबे ,बी.काम(ii) की डेट-शीट और कई सपने धूल से ढके हुए दिखते हैं और उसके पीछे वो त्याग है जो बहुत कम आदमियों में मिलता है |
“ भईया ने एक तरह से लव-मैरिज की थी |परिवार के ख़िलाफ़ जाकर |भाभी के परिवार में माँ के अलावा कोई सगा नहीं था |इनके पिताजी जो तो इनके जन्म के साल ही चल बसे थे |घर वाले चाहते थे कि कम से कम लड़की का कुल-परिवार तो हो ,पर भईया के आगे - - - -,माँ को वो बिल्कुल पसंद नहीं थी और माँ के कारण मुझें भी उनसे नारजगी रही “ वो बड़ी साफ़गोई से अपनी बात रखता है |
“ तो क्या कभी तुमनें पहले आपस में बात नहीं की ,कोई मजाक नहीं ,जैसा की तुम यहाँ पड़ोस की भाभियों से करते हो ?”- मैंने पूछा |
“ उस एक साल में बहुत औपचारिक बात हुई |वो भी विशेष मौके पर | हाँ ,10 महीने बाद गाँव गया था तीन दिन तब उन्होंने बहुत मान दिया ,मेरी हर बात का ख्याल रखती थीं ,तब मेरा विचार उनके लिए कुछ बदल गया |मुझे अपने भाई की परख पर विश्वास हुआ ,ये घर सम्भालने वाली स्त्री है और इसे भी वही मान मिलना चाहिए जो मेरी दूसरी भाभियों को मिला है |”
तो क्या भाई के बाद शादी का फैसला पूर्णत: मन से लिया या दबाब में |
“ जब भाई की लाश उनकी यूनिट लेकर आई तो ये पागल जैसी हो गईं |यूँ तो हमें खबर लग गई थी पर इन्हें नही बताया |23 को दोपहर को भाई की बॉडी यहाँ पहुंची ,सुबह ही ये सफईया कराकर आईं थी ,21 की रात को इन्होने भाई को फ़ोन पे ये बात बताई थी और 22 की सुबह बड़े भाई के पास इन भईया की यूनिट से न्यूज़ पहुँचा था |कभी दीवार से सिर पटकती ,कभी अपनी ही चुन्नी से गला दबाती ,चाकू से नश काटने की कोशिश की और तो और मैं किसी काम से बाहर गया तो ये सबसे नजरे बचाकर पिछवाड़े कुएँ पर पहुँच गई वो तो अच्छा हुआ एक पटीदार वहाँ पहुंच गए |मुझे भाई की अंतिम यात्रा में भी नहीं शामिल नहीं होने दिया गया हो,क्योंकि उस समय इन्हें सम्भालने के लिए मैं ही एक मर्द था ,बाकी लोग तो जेठ-ससुर लगते थे |जिस दिन दाग देकर आए थे उसी रोज़ मुझे एक करवट इनके साथ सोना पड़ा ,ये बीच में थीं और दूसरी करवट बड़ी भाभी थीं |कहने वाले तो उसी रोज़ - - - “
“ समझता हूँ | मैंने भी तेरी भाभी को खोया था और मुझसे बेहतर कौन जानेगा इस बात को- - - लोगों की तल्खी को - - “ मैंने उसके कन्धे पे थपथपाते हुए और गहरी साँस लेते हुए कहा |
तेरहवी के दिन मुझ तक ये बात पहुंची की बड़े-बुजुर्गों की ईच्छा है की मैं उन्हें अभयदान दूँ |पर मैं तो पहले ही उन्हें अपनाने का मन बना चुका था |चूँकि भईया के बाद मैं ही सबसे छोटा था इसलिए उनसे मित्र सी घनिष्ठता थी ,बेशक उन्होंने माँ की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया था पर वो हीरा चुनकर लाए थे |रंग-रूप का नहीं ,गुणों का भी हीरा |मुझे लग रहा था की भाई दुखी हैं और कह रहे हैं इस दुर्भाग्य की मारी ने मुझ पर भरोसा किया |पर मैं उसका भरोसा नहीं बन सका |क्या मेरे प्यार ,मेरे भरोसे को तुम यूँ बिखर जाने दोगे ?“उसने जैसे अतीत में झांकते हुए धीमी आवाज़ में कहा |
“ क्या सभी लोग इस निर्णय से सहमत थे ? ”
“ पिता-भाइयों ने फैसला मुझ पर छोड़ दिया | संध्या(भाभी ) शादी की इच्छुक नही थीं |माँ उन्हें कुल्क्छ्नी मानती थी इसलिए वे तो बिल्कुल ही तैयार नहीं थीं| यहाँ तक की इनकी माँ-और परिवार वाले भी आशंकित थे कि कहीं मेरे गाँव वाले जो अपनी दकियानूसी के लिए बदनाम हैं कोई समाजिक कलह ना पैदा करें |मेरे गाँव में प्रेम-विवाह ,समगोत्रिय विवाह या विजातीय विवाह के कारण कई लोगों को मार डाला गया है |लोग टोना-टोटका और अंधविश्वास में जकड़े हैं |पर मेरा फूफाजी और बड़े भईया के ससुर ने सबको सहमत कर लिया | ”
“ क्या तेरा बलिदान सार्थक रहा ?तेरी इस भाभी को मैं अर्पिता सा नहीं पाता हूँ “-मैंने उसे खुलने के लिए अपनी मनोव्यथा बताई |
मैं एक विस्थापन हूँ ,प्यार नहीं |मैं बेशक उन्हें तन-मन से अपना मान लूँ |पर मैं उनके मन से भाई की यादों को नहीं निकाल सकता और उस स्थान को कभी नहीं पा सकता |मैं भाई की जगह लेना भी नहीं चाहता परंतु उन्हें घुटा-घुटा देखता हूँ तो ग्लानि होता है |उनका दिल बहुत कमज़ोर है ज़रा सा डांट दूँ तो रोने लगती हैं और बेहोश हो जाती है |कई बार लगता है कि मैंने कही विवाह करके उनके साथ अन्याय तो नहीं किया !” गहरी और लम्बी सांस लेते हुए वो कहे जा रहा था |
“ पर अब तो तुम दोनों का बेटा है और ये तुम दोनों के प्रेम की परनीति ही तो है “ मैंने उसके मन को हल्का करने के लिए कहा
क्या शरीर का समपर्ण ही प्रेम की पूर्णता है ? ये एक विवशता भी तो हो सकती है |मुझे तो ऐसा लगता है जैसे वो मुझसे उरिन होने के भाव से मुझे शरीर सौपती हैं |पर मुझे उनसे प्रेम नहीं अपितु वात्सल्य मिलता है |नौकरी ना होते हुए भी मैंने उस बच्चे को केवल इसलिए आने दिया ताकि इनका मन बहल सके और इस प्रयास में मैं कुछ हद तक सफल हूँ पर अब जिम्मेवारी भी तो बढ रही है |जब तक माँ-पिताजी हैं ,जब तक खेती-बारी एक है तभी तक तो भाई लिहाज करेंगे पर ये फैसला तो मेरा ही है ना - - - -
“अनुकम्पा वाली नौकरी का क्या हुआ ? “
“ पहले तो इन्हें ही जॉइन कराने का मन था| पर घर वाले कह रहे थे कि हमारे खानदान की लड़की पेंट-शर्ट पहनकर जाएगी तो बिरादरी क्या कहेगी |
इसलिए अपने नाम से आवेदन भरा था |पहले तो वे लोग टाल-मटोल करते रहे |फिर अर्दली की पोस्ट दे रहे थे |बाद में फील्ड की पोस्ट की पेशकश की तो संध्या ने कह दिया की सूखी रोटी खा लेंगे पर अब दुबारा रिस्क नहीं ले सकते | “ उसके चेहरे पे थकन और निराशा तैर रही थी |
“ आत्म-स्वाभिमान कैसे बचा रहे हो ? “
“ झूठ के सहारे|
अभी तक संध्या की सैनिक-विधवा-पेंशन मिल रही है |दरभंगा में जहाँ रहता था वहाँ से ससुराल और गाँव पास है |हफ़्ते में चला जाता था तो राशन-सब्ज़ी कुछ ना कुछ ले ही आता था |
अब जब मैं यहाँ चला आया हूँ तो उसे माईके भेज दिया है फिर गाँव चली जाएगी |पर ऐसा कितने दिन चलेगा ?भाभी आ जाएंगी तो अपना परिवार कैसे लाऊंगा यहाँ ? यूँ तो बड़ी भाभी ने मुझे माँ की तरह प्यार दिया है और उनके बच्चे भी संध्या और बाबू(बेटे ) से घुले-मिले हैं पर उन पर बोझ तो नहीं बन सकता | “
“ भविष्य को लेकर क्या योजना है ? ”
“ सोच रहा हूँ इन्हें बी.एड. करा दूँ |विधवा कोटे का लाभ ले सकती हैं |और इस विषय पर सारे परिवार की सहमति है|मेरा मन तो दूध या किसी अपने काम को करने का है |पर उसके लिए पूंजी कहाँ से लाऊं ?भईया के बाद जो थोड़े-बहुत पैसे मिले थे उससे छपरा में एक प्लाट ले लिया था इनके नाम से |वही हमारी भविष्य-निधि है |उसे तो नहीं बेचूंगा |पता नहीं मुक्कदर आगे क्या दिन दिखाए - - - “
उसका आत्म-गौरव,अचानक कंधे पर उठाए गए बोझ का दर्द और मर्द-भाव आपस में गुत्थम-गुथी कर रहे थे | मैंने उसके कंधे पे हल्की सी थपकी दी और अपने एक दोस्त को फ़ोन मिला दिया |
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सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
शुक्रिया राजेश दीदी जी एवं हरि प्रकाश भाई जी ,अगर समीक्षात्मक टिप्पणी देते तो और अच्छा लगता फिलहाल ऐसे लम्बी रचना को पढ़ने और के लिए भी धैर्य और साहित्यक अभिरुचि का अहोना आवश्यक है ,इस हेतु भी आप का धन्यवाद
कई सवाल कड़ी करती इस सुन्दर कहानी के लिए आपको हार्दिक बधाई ,सोमेश जी !
कहानी अच्छी लग रही है आगे का इन्तजार है ...
शुक्रिया आ.योगराज जी ,कहानी को मंच पे स्वीकृत करने हेतु
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