For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

                        भंडारा

मास्टर जी ,आप भी चलिए ना भंडारे में - - - “ साथियों ने आग्रह किया|

‘” भाई तुम तो जानते ही हो ,मुझे लाईनों में लगना और याचकों की तरह मांगना पसंद नहीं है “ मा.भोलेराम ने सपाट सा जवाब दिया |

“ अरे!आप भी,भाईसाहब,भंडारे की लाईनों में लगने में कौन सी ईज्जत घट जाती है बल्कि ये तो आपकी भक्ति-भावना की परीक्षा होती है ,प्रसाद के लिए आप जितना ईंतज़ार कर सकते हैं उतना ही पुण्य बढ़ता है “`राजीव बोल पड़ा |

“भाई मैं ऐसी भक्ति-परीक्षा नहीं देना चाहता ,भले आप मुझे आस्तिक समझ लीजिए ,वैसे भी घंटा भर पहले मैंने भोजन लिया है |” मास्टर जी ने रक्षात्मक मुद्रा में कहा

लगभग आधे घंटे बाद जब सब चलने लगे तो भोलाराम बोले –“अगर घर के लिए प्रसाद देते हों तो पूरी-सब्ज़ी लेते आना |”

तभी पड़ोसे की एक भाभी आ जाती हैं | ”­­­­अरे !आप लोग गए नहीं ,भंडारा तो कब का शुरु हो गया है ?”

“ भाभी ,आप तो पूड़ी-सब्ज़ी ली हैं ,मास्टर जी को खिला दीजिए “

“अरे! ये हम अपने उनके लिए लाएं हैं और हमारा जूठा भी है, वे घर के लिए नहीं देते थे तो हमने ये उपाय किया ,वैसे भी कहीं इनकी मेहरिया जान गईं तो हम दोनों की शामत-- - - मेरे वो जान गए तो भी ना जाने कौन सा बवाल उठा दें|”कहती हुई वो आगे बढ़ गईं और भोलेराम जी मित्रों की इस खिसकड़ी पर भीतर ही भीतर भन्ना उठे  थे बस बोले कुछ नहीं |

“ मैंने तुम लोगों से कहा था और तुम ने पुरे शहर में ढिढोरा पीट दिया “

वैसे ये भोलेराम की पुरानी आदत थी कि वे भंडारे या जागरण में ना जाते पर अगर कोई परिचित प्रसाद लाकर दे देता तो गद्गद हो जाते |भंडारे की सब्ज़ी का विशेष जायका उन्हें भी पसंद था |पर कुछ संकोच और कुछ भंडारों में दिखने वाले भेदभाव के कारण उन्हें वहाँ जाना ना भाता |

यूँ तो अक्सर भंडारों में लोगों को एक साथ बिठा कर खिलाया जाता है पर वहाँ पर सेवादार और विशेष लोग विशेष तरह का बर्ताव पाते हैं |अक्सर सेवादार या बड़े दानी अपने सभी रिश्तेदारों ,मित्रों को ना केवल अलग से बिठा कर जीमाते हैं बल्कि अलग से गठरी बाँध कर अपना रौब जमाते हैं जबकि भूखे-जरुरतमन्द या साधारण दानदाता को केवल निपटा के पुण्य-प्राप्ति की जाती है इसलिए जब कोई उनके यहाँ कोई जागरण/भंडारे की रसीद फाड़ने आता तो वे या तो घर में मुँह छुपा लेते और अगर कोई परिचित आ धमकता तो 51 रुपए की रसीद ले अधिकारपूर्वक कहते –“प्रसाद भी ऐसे ही दे जाना |”

वो अलग बात है की कभी कोई प्रसाद लेकर ना आता |

“अरे ,भाई जी चलते काहे नहीं कम से कम हमारे खातिर - - “एक मित्र बोल पड़ा |

“ना भाई ना! वो मन्दिर में गया था भंडारा खाने जब 15 साल का था |अभी बैठा ही था की एक सेवादार ने अपने किसी परिचित को बिठाने के लिए मुझे हाथ पकड़कर उठा दिया और कहा अभी इंतजार करो ,भगवान के  प्रसाद के लिए ऐसा भेद ,उसे सुना कर बिना भंडार खाए आ गया और तब से कान पकड़ लिए “  

“ अरे !वहाँ हमारे परिचित सज्जन जी सेवा दे रहे हैं और हम लोग भी तो हैं |सजन भए कोतवाल तो डर काहे का “

सभी लोग वहाँ पहुंच जाते हैं |लोग दरी पे बैठे लंगर जीम रहे होते हैं और कुछ विशेष व्यवस्था में |बाहर लम्बी लाईनों में लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे होते हैं |

“भाई ,मैं इस भीड़ में नहीं लग सकता ,पास में मेरा मित्र रहता है ,वहाँ जाता हूँ चाय तो आराम से मिलेगी - - - “

भोलेराम बोल पड़े

“रुकिए ,तो सज्जन जी को देखते हैं ,वो रहे उधर सेवा कर रहे हैं ,मैं आता हूँ अभी - - -“कहता हुआ विजय भीड़ को चीरता हुआ निकल जाता है |

थोड़ी देर में |भोलेराम और बाकी साथी भीड़ की उपेक्षा करते हुए ,लाईनों का निरादर करते हुए ,अंदर पंगत में खाली पड़ी जगह पर जम जाते हैं |

पंगत में ज़्यादा लोग बिठा दिए गए थे |उस मुकाबले में पूरियां नहीं निकल पा रही थीं |लोग पूरी-पूरी चिल्ला रहे थे |भोलेराम जी और बाकी मंडली ,विशेष मेहमानों की तरह गर्म-गर्म पुरियां निगल रहे थे जबकि कई लोग खाली सब्ज़ी लिए पूरी के ईंतज़ार में झुंझला रहे थे |

पूरी नौ पूरी पेट में उतार उन्होंने डकार ली |साथियों की तरफ प्रश्न-भाव से देखा|एक साथी ने रुकने का ईशारा दिया |थोड़ी देर में सज्जन जी एक प्लेट में पूरी-सब्ज़ी परोस कर लाए –“भाभीजी को भी प्रसाद दे देना “

उनकी तो जैसे मुराद पूरी हो गई |डरते थे की कहीं घर जाने पर पत्नी ताना ना दें –“खुद तो छक्क के आ गए मेरे वास्ते लाने में लाज आ रही थी “

पूरी-सब्ज़ी की प्लेट लेकर वे गौरवान्वित महसूस कर रहे थे |लोग को अपनी जूठी थाली में प्रसाद ले जाते सोचते –

“बेचारे,दो पुरियों के लिए - - - “

तभी एक पड़ोसी मित्र मिल जाता है |

“अच्छा किया ,आप ने इंतजाम कर लिया |यहाँ भीड़ में खड़े-खड़े तो पैर टूटते हैं |”

“तुम्हारी भाभी के लिए हैं |”भोलाराम जी ने टालते हुए कहा

“कोई नहीं हम दोनों बाँट कर खा लेंगे |”वो भी पूरा ढीठ था

घर पहुंचकर  देखते हैं की वो बाजार करने चली गईं हैं |

“अब|”

“अरे !दाने-दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम - -“ कहकर अनिल प्लेट ले लेता है

“भाई ,एक पूरी तो छोड़ दो |”

“अरे!आप के तो जानकार हैं ,फिर ले आना |”

वो चुप्प हो गए |कुछ देर में श्रीमती जी लौट आती हैं |

“ आप मेरे लिए पूरी-सब्ज़ी लाएं हैं ,कहाँ रखी है ?कहीं दिखाई नहीं देती |”

“अरे वो अनिल ने - - - -“

“ आप मेरे वास्ते लाए थे या - - - “

“ कोई बात नहीं तुम मेरे साथ चलों - -“

“मुझे नहीं जाना ,लेकर जाओ अपनी सौत को और अगर खाली हाथ लौटे तो - - - “

वो सबसे नजरें बचाकर ,दुबारा वहाँ पहुंचते हैं ,पर मि..सज्जन वहाँ नहीं दिखते

वे लाईन में लगे हुए अपनी बारी का इंतजार करते हैं |पंगत में बैठकर एक-एक कर पूरी जमा करते हैं |

पंगत उठने पर प्लेट उठाकर मुहँ नीचा किए छुपते-छिपाते आगे बढ़ते हैं |

“ मास्टर जी आप “शर्म और घबराहट से प्लेट छुट जाती है और वे बुझे-बुझे से घर की और बढ़ जाते हैं |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

Views: 761

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by somesh kumar on December 28, 2014 at 10:41pm

शुक्रिया सौरभ सर एवं गोपाल सर ,आपके सस्नेह मार्गदर्शन से रचना कर्म का ये प्रयास सफल महसूस होता है|आ. वन्दना जी एवं भाई हरिप्रकाश जी आप के भी स्नेह व् मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 3:03pm

आपकी कोई पहली कहानी पढ़ रहा हूँ. कथ्य बढिया है. पहली प्रस्तुति के हिसाब से यह प्रयास श्लाघनीय है. वैसे, विन्यास पर और ध्यान दें. प्रयासरत रहें. निखार आता जायेगा.
शुभेच्छाएँ.

Comment by vandana on December 27, 2014 at 5:54am

वास्तविकता का चित्रण करती बढ़िया कहानी आदरणीय सोमेश जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 26, 2014 at 5:08pm

सोमेश जी बधाई . आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण की सलाह पर ध्यान दीजियेगा !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2014 at 11:29am

सोमेश जी

पांचवी पंक्ति में आस्तिक को नास्तिक कर लें i अभी बहुत  अभ्यास की आवश्यकता है  i यह अच्छी  बात  है कि कथा लेखन में आपकी रूचि है i  सस्नेह i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service