बॉस के कमरे की अधखुली खिड़की। उसने डूबते सूरज को देखते हुए कहा- “आप मेरे प्रमोशन की बात को हमेशा टाल जाते है.... मेरे हसबेंड के लिए आहूजा ग्रुप में सिफारिश भी नहीं की अब तक... .. उन्होंने तीन महीनों से बातचीत बन्द कर रखी है। हमेशा नाराज रहते है, रोज ड्राइंग रूम में सोते है। पता है, मैं कितनी परेशान हूँ... इस बार पीरियड भी नहीं आया है।”
कहते-कहते वो अचानक मौन हो गई। कमरे में चीखता हुआ सन्नाटा पसर गया था।
क्षितिज पार सूरज तो कब का डूब चुका था।
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
आदरणीय सौरभ सर आपने लघुकथा के इस प्रयास पर समय दिया.. हार्दिक आभार....अभिभूत हूँ ... मूल रूप से मैं ग़ज़ल ही लिखता हूँ बाकी विधा में केवल अवसर विशेष पर ही कुछ लिखता हूँ ... कभी कभी सोचता हूँ कि किसी एक विधा को लेकर उसी में पारंगत होकर रचना करू लेकिन फिर दूसरी विधाओं की ओर आकर्षित हो जाता हूँ .... आपने मेरे प्रयास पर सराहना की है उससे मैं अभिभूत हूँ पर जानता हूँ इस विधा में बहुत मेहनत चाहिए. अभ्यास चाहिए. आपने जो मार्गदर्शन दिया है उसे अभी केवल जितना समझ पाया हूँ-
बॉस के कमरे की अधखुली खिड़की. (कमरे का पूरा दृश्य और वातावरण की स्थिति उभर आई...विशेष रूप से अधखुली खिड़की जैसे खुद कमरे की वस्तुस्थिति को स्पष्ट कर रही है. इसके लिए कम्पनी की बिल्डिंग बताने की जरूरत ही नहीं है .)
उसने डूबते सूरज को देखते हुए कहा (क्योकि उसे भी आभास भी हो रहा था कि उसके जीवन का सूरज डूब रहा है, यहाँ क्षितिज का उल्लेख करना शब्दों का अपव्यय था)
“आप मेरे प्रमोशन की बात को हमेशा टाल जाते है.... मेरे हसबेंड के लिए आहूजा ग्रुप में सिफारिश भी नहीं की अब तक... .. उन्होंने तीन महीनों से बातचीत बन्द कर रखी है. (पति द्वारा दबाव बनाने की स्थिति अधिक अच्छे से स्पष्ट हो रही है, शायद इसमें पति की मौन अभिस्वीकृति भी हो ) हमेशा नाराज रहते है.. रोज ड्राइंग रूम में सोते है. पता है, मैं कितनी परेशान हूँ... इस बार पीरियड भी नहीं आया है.”
कहते-कहते वो अचानक मौन हो गई. (पूर्ण विराम बहुत जरुरी था ) कमरे में चीखता हुआ सन्नाटा (ट्रेजेडी के चरम को दर्शाता हुआ )
क्षितिज पार सूरज तो कब का डूब चुका था. ( दरअसल उसे जिस घटना के होने का आभास हो रहा था, वो घटना वास्तव में कब की घट चुकी थी.)
कुछ कुछ ही समझ सका हूँ सर .... सादर
आपकी इस लघुकथा के माध्यम से तथ्य गहनता से उभर कर आया है. बहुत ही आश्वस्तिकारी प्रयास हुआ है, आदरणीय मिथिलेशजी. इसी कथा का विन्यास कुछ यों देखिये -
बॉस के कमरे की अधखुली खिड़की. उसने डूबते सूरज को देखते हुए कहा- “आप मेरे प्रमोशन की बात को हमेशा टाल जाते है.... मेरे हसबेंड के लिए आहूजा ग्रुप में सिफारिश भी नहीं की अब तक... .. उन्होंने तीन महीनों से बातचीत बन्द कर रखी है. हमेशा नाराज रहते है.. रोज ड्राइंग रूम में सोते है. पता है, मैं कितनी परेशान हूँ... इस बार पीरियड भी नहीं आया है.”
कहते-कहते वो अचानक मौन हो गई. कमरे में चीखता हुआ सन्नाटा पसर गया था.
क्षितिज पार सूरज तो कब का डूब चुका था.
विश्वास है, मेरे प्रयास की सकारात्मकता को समझ पायेंगे.
सादर
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