**साल गुजरे जा रहे हैं.
आ रहे पल, जा रहे पल
साल गुजरे जा रहे हैं.
वक़्त बन के पाहुना,
आ गया है द्वार पर.
साज सज्जा वाद्य धुन.
गूंज मंगलचार घर.
नवल वधु से कुछ लजा,
दिन सुनहरे आ रहे हैं.
साल गुजरे जा रहे हैं.
बोझ बढ़ता नित नया.
स्कूल का बस्ता हुआ,
दाम बढ़ते माल के,
आदमी सस्ता हुआ.
नाम सुरसा का सुना जब,
आमजन भय खा रहे है.
साल गुजरे जा रहे हैं.
सूर्य भटका घूमता,
वक़्त के दुष्चक्र में.
नापता है दूरियां,
चाँद भी किस फ़िक्र में.
पल्लवित, पीले हुए कुछ.
वस्त्र बदले जा रहे हैं.
साल गुजरे जा रहे हैं.
**हरिवल्लभ शर्मा
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय somesh kumar जी आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया का ह्रदय से आभार.
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका कुशल मार्गदर्शन हमें उत्तरोत्तर प्रगतिपथ पर बढाता है..आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार. सादर.
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का ह्रदयतल से आभार..
आदरणीय khursheed khairadi साहब आपका अनमोल स्नेह रचना को मिला..हार्दिक स्वागत एवं आभार आपका.
आदरणीय Dr. Ashutosh Mishra जी आपकी स्नेहिल टीप का स्वागत..उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार..
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपका स्नेह मार्गदर्शन मिला आपका हार्दिक आभार सादर
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडिवाला जी आपकी प्रेरक टीप का स्वागत..उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सादर.
आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना धर्मिता को पुष्टि मिली है ..आपका हार्दिक आभार.
आ गए नववर्ष में उत्कर्ष कुछ करते हुए
एक दुसरे के सान्निध्य में लिखते-पढ़ते हुए
ज़िन्दगी गुज़र जाएगी युहीं सफ़र करते हुए
नवगीत मोहक हो गए आपसे रंग भरते हुए |
आदरणीय हरि वल्लभ भाई , शानदार नवगीत पढ़वाने लिये आपका शुक्रिया और गीत जके लिये हार्दिक बधाई ।
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