** ग़ज़ल : वक़्त भी लाचार है.
2122,2122,212
आदमी क्या वक़्त भी लाचार है.
हर फ़रिश्ता लग रहा बेजार है.
आज फिर विस्फोट से कांपा शहर.
भूख पर बारूद का अधिकार है.
क्यों हुआ मजबूर फटने के लिए.
लानतें उस जन्म को धिक्कार है.
औरतों की आबरू खतरे पड़ी,
मारता मासूम को मक्कार है.
कर रहे हैं क़त्ल जिसके नाम पर,
क्या यही अल्लाह को स्वीकार है.
कौम में पैदा हुआ शैतान जो,
बन…
ContinueAdded by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 3:47pm — 21 Comments
**सूरज रे जलते रहना.
भीषण हों कितनी पीढायें,
अंतस में दहते रहना.
सूरज रे जलते रहना.
घिरते घोर घटा तम बादल,
रोक नहीं तुमको पाते,
सतरंगी घोड़ों के रथ पर,
सरपट तुम बढ़ते जाते.
दिग दिगंत तक फैले नभ पर,
समय चक्र लिखते रहना.
सूरज रे जलते रहना.
छीन रहे हैं स्वर्ण चंदोवा,
मल्टी वाले मुस्टंडे.
सीलन ठिठुरन शीत नमी सब,
झुग्गी वाले हैं ठन्डे.
फैले बरगद के नीचे…
ContinueAdded by harivallabh sharma on January 7, 2015 at 3:30pm — 22 Comments
2122,2122,212
सह सके ना फूल के टकराव को.
हैं मुकाबिल झेलने सैलाव को.
थामना पतवार सीखा है नहीं.
हैं चले खेने बिफरती नाव को.
हौसला उनका झुकाता आसमां.
आजमाते पंख के फैलाव को.
हर सफलता चूमती उनके कदम,
आजमाते वक़्त पर जो दाव को.
भाव उनके भी गिरेंगे एक दिन,
भूल जाते हैं सरे सद्भाव को.
.
हरिवल्लभ शर्मा दि. 04.01.2015
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by harivallabh sharma on January 4, 2015 at 6:30pm — 15 Comments
नवगीत : दिन में दिखते तारे.
तिल सी खुशियों की राहों में,
खड़े ताड़ अंगारे.
कैसे कटें विपत्ति के दिन,
दिन में दिखते तारे.
आशा बन बेताल उड़ गयीं,
उलझे प्रश्न थमाकर.
मुश्किल का हल खोजे विक्रम,
अपना चैन गवाँकर.
मीन जी रही क्या बिन जल के.
खाली पड़े पिटारे.
कैसे कटें विपत्ति के दिन..
दिन में दिखते तारे.
दर्पण हमको रोज दिखाता,
एक फिल्म आँखों से,
पत्तों जैसे दिवस झर…
ContinueAdded by harivallabh sharma on January 1, 2015 at 3:00pm — 24 Comments
**साल गुजरे जा रहे हैं.
आ रहे पल, जा रहे पल
साल गुजरे जा रहे हैं.
वक़्त बन के पाहुना,
आ गया है द्वार पर.
साज सज्जा वाद्य धुन.
गूंज मंगलचार घर.
नवल वधु से कुछ लजा,
दिन सुनहरे आ रहे हैं.
साल गुजरे जा रहे हैं.
बोझ बढ़ता नित नया.
स्कूल का बस्ता हुआ,
दाम बढ़ते माल के,
आदमी सस्ता हुआ.
नाम सुरसा का सुना जब,
आमजन भय खा रहे है.
साल गुजरे जा रहे हैं.
सूर्य भटका…
ContinueAdded by harivallabh sharma on December 31, 2014 at 7:23pm — 16 Comments
ग़ज़ल : शुभ सजीला आपका नव साल हो.
गर्व से उन्नत सभी का भाल हो.
शुभ सजीला आपका नव साल हो.
कामना मैं शुभ समर्पित कर रहा,
देश का गौरव बढ़े खुश हाल हो.
आसमां हो महरबां कुछ खेत पर,
पेट को इफरात रोटी दाल हो.
मुल्क के हर छोर में छाये अमन,
हो तरक्की देश मालामाल हो.
आदमी बस आदमी बनकर रहे,
जुल्म शोषण का न मायाजाल हो.
मन्दिरों औ मस्जिदों को जोड़ दें,
घोष जय धुन एक ही…
ContinueAdded by harivallabh sharma on December 28, 2014 at 5:30pm — 29 Comments
फटी भींट में चौखट ठोकी,
खोली नयी किवरिया.
चश्मा जूना फ्रेम नया है,
ये है नया नजरिया.
गंगा में स्नान सबेरे,
दान पूण्य कर देंगे.
रात क्लब में डिस्को धुन पर,
अधनंगे थिरकेंगे.
देशी पी अंग्रेजी बोलीं,
मैडम बनीं गुजरिया.
अपने नीड़ों से गायब हैं,
फड़की सोन चिरैया.
ताल विदेशी में नाचेंगी,
रजनी और रुकैया.
घूंघट गया ओढनी गायब,
उड़ती जाए चुनरिया.
चूल्हा चक्की कौन करे…
ContinueAdded by harivallabh sharma on December 22, 2014 at 1:55pm — 24 Comments
Added by harivallabh sharma on December 21, 2014 at 2:17pm — 18 Comments
*नवल वर्ष है आया.
बीता वर्ष पुरातन छोडो,
क्या खोया क्या पाया.
नवल वर्ष है आया.
तन्द्रा भंग सुहाना कलरव,
मुर्गा बांग लगाता.
किरण धो रही कालिख सारी,
दिनकर द्वार बजाता.
सागर जल में नहा रश्मियाँ,
दुति चन्दन लेपेंगीं.
पौ फटते ही तिलक सिंदूरी,
सूरज भाल लगाया.
नवल वर्ष है आया.
भोर उठी आगी सुलगाती,
धुंध धुंआ संग जाती.
पीली धूप पकौड़ी तलती,
श्यामा दूध दुहाती.
किया…
ContinueAdded by harivallabh sharma on December 19, 2014 at 11:30pm — 12 Comments
एक प्रयास ...नवगीत : तुम अब तक भूखे हो?
हम सबको तो मिला चबैना,
तुम अब तक भूखे हो?
बंटता खूब चुनावी चंदा,
तुम अब तक रूखे हो?
पंजा वाले, सइकल वाले,
कुछ हाथी वाले थे.
खिले फूल थे, दीवारों पर,
सब अपने वाले थे.
बटी बोतलें गली गली में,
तुम अब तक छूछे हो?
हम सबको तो मिला चबैना,
तुम अब तक भूखे हो?
हाथों…
Added by harivallabh sharma on December 6, 2014 at 11:00am — 14 Comments
साँस चलती रही, आस पलती रही.
रात ढलने तलक, लौ मचलती रही.
वादियों में दिखी, ओस-बूँदें सहर,
चाँदनी रात भर, आँख मलती रही.
कुछ हसीं चाहतों की तमन्ना लिए,
जिन्दगी आँसुओं से बहलती रही.
मैं समझता हुयी उम्र पूरी मगर,
मौत जाने किधर को टहलती रही.
इक उगा था कभी चाँद मेरे फ़लक,
जुगनुओं को यही बात खलती रही.
वो सुनी थी कभी बांसुरी की सदा,
ज़िंदगी रागनी में बदलती रही.
मैं…
ContinueAdded by harivallabh sharma on November 26, 2014 at 2:00pm — 23 Comments
*रँग जीवन हैं कितने.
सुख अनंत मन की सीमा में,
दुख के क्षण हैं कितने ?
अभिलाषा आकाश विषद है,
है प्रकाश से भरा गगन.
रोक सकेंगे बादल कितना,
किरणों का अवनि अवतरण.
चपला चीर रही हिय घन का,
तम के घन हैं कितने ?
..दुख के क्षण हैं कितने ?
काल-चक्र चल रहा निरंतर,
निशा-दिवस आते जाते,
बारिश सर्दी गर्मी मौसम,
नव अनुभव हमें दिलाते.
है अमृतमयी पावस फुहार,
जल प्लावन हैं कितने ?
..दुख के क्षण हैं कितने ?
अनजानों की ठोकर सह…
ContinueAdded by harivallabh sharma on October 16, 2014 at 11:29pm — 14 Comments
हट गया तूफ़ान जुल्मत वो कहानी है नहीं.
हो गये आज़ाद हम सब अब गुलामी है नहीं.
फूट के कारण हमेशा लुट रहा हिन्दोस्तां,
बँट गए टुकड़े अलहदा एकनामी है नहीं.
ये मुसल्माँ वो है हिन्दू धर्म ये किसने गढ़े,
भेद इंसानों में करते धूप पानी है नहीं.
स्वर्ण पंछी देश था ये जानता सारा जहाँ,
आज वो वैभव पुनः पाने की ठानी है नहीं.
मुल्क को नीलाम करते देश के गद्दार ये,
कोई नेता देश सेवक खेजमानी है…
ContinueAdded by harivallabh sharma on October 15, 2014 at 3:00pm — 8 Comments
**दीप कोई प्रीत का अंतस जले.
हो चुकी है रात आधी,
घोर तम मावस पले.
इस अमा में दीप कोई,
प्रीत का अंतस जले.
--
हर तरफ खुशियाँ बिछी हैं,
द्वार तोरण से सजे.
आतिशी होते धमाके,
वाद्य मंगल धुन बजे.
कौन देता ध्यान उनपर,
भूख से मरते भले.
--
बाल दे इक दीप कोई,
रौशनी भी हो यहाँ.
झोपड़ी को राह तकते,
घिर चूका है कहकशाँ.
लूटते सारी ख़ुशी वो,
काट सकते जो…
ContinueAdded by harivallabh sharma on October 7, 2014 at 2:07pm — 13 Comments
पाँव में खुद के बिवाई हो गयी.
आदमी तेरी दुहाई हो गयी.
वायु पानी भी नहीं हैं शुद्ध अब,
सांस लेने में बुराई हो गयी.
बारिशों का दौर सूखा जा रहा.
मौसमों की लो रुषायी हो गयी.
आपदाएं रोज़ होतीं हर कहीं,
रुष्ट अब जैसे खुदाई हो गयी.
काट डाले पेड़ सब मासूम से,
जंगलों की तो सफाई हो गयी.
काटती है पैर खुद अपने भला,
देखिये आरी कसाई हो गयी.
पेड़ दिखते थे जहाँ पर गाँव…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 30, 2014 at 1:00am — 18 Comments
नवगीत..चलता सूरज रहा अकेला
घूमा अम्बर मिला न मेला,
चलता सूरज रहा अकेला.
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गुरु मंगल सब चाँद सितारे,
अंधियारे में जलते सारे.
बृथा भटकता उनपर क्यों मन,
होगा उनका अपना जीवन.
कोई साथ नहीं देता जब,
निकला है दिनकर अलबेला.
..चलता सूरज रहा अकेला.
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पीपल के थर्राते पात,
छुईमुई के सकुचाते गात.
ऊषा की ज्यो छाती लाली,
पुलकित हो जाती हरियाली.
सभी चाहते भोजन पानी,
जल थल पर है मचा…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 24, 2014 at 1:19pm — 8 Comments
ग़ज़ल..टल लिया जाए.
२१२२ १२१२ २२
क्यों न चुपचाप चल लिया जाए.
बात बिगड़े न टल लिया जाए.
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जर्द हालात हैं ज़माने के.
रास्ता ये बदल लिया जाये.
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दायरे तंग हो गए दिल के.
घुट रहा दम निकल लिया जाए.
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थक गए पाँव चलकर मगर सोचा.
साथ हैं तो टहल लिया जाए.
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बर्फ सी जीस्त ये जमी क्यों थी.
खिल गयी धूप गल लिया जाए.
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वारिशें इश्किया शरारों की.
भींगते ही फिसल लिया…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 22, 2014 at 1:30am — 17 Comments
खुद ज़रा गर्दन झुकाकर रूबरू हम हो गए.
बंद करली आँख अपनी गुफ़्तगू में खो गए.
वस्ल की जो थी तमन्ना किस क़दर हावी हुयी.
ख्व़ाब में आयेंगे वो इस जुस्तजू में सो गए.
कौन जाने थी नज़र या वो बला जादूगरी.
देख मुझको बीज दिल में इश्क का वे बो…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 16, 2014 at 1:30pm — 16 Comments
हौंठ सीं गर्दन हिलाना आ गया.
दोस्त ! जीने का बहाना आ गया.
जिन्दगी में गम मुझे इतने मिले,
अश्क पीकर.. मुस्कुराना आ गया.
ख्वाब सब आधे अधूरे रह गए,
दर्द सीने में ...बसाना आ गया.
दर्द के किस्से सुनाऊँ किस तरह,
गीत गज़लें गुनगुनाना आ गया.
साथ रहने का असर भी देखिये,
आप से बातें छिपाना आ गया.
हादसों ने पाल रख्खा है मुझे.
मौत से बचना बचाना आ…
Added by harivallabh sharma on September 8, 2014 at 9:10pm — 18 Comments
चाँद बढ़ता रहा...... चाँद घटता रहा.
यूँ कलेजा हमारा ........धड़कता रहा.
--
उलझने रात सी ....क्यों पसरती रहीं.
वो दरम्याँ बदलियों .... भटकता रहा.
--
टिमटिमाता सितारा रहा... भोर तक.
शब सरे आसमा को.... खटकता रहा.
--
उस हवेली पे जलता था... कोई दिया
बन पतंगा सा उस पे.... फटकता रहा.…
Added by harivallabh sharma on September 5, 2014 at 8:30pm — 21 Comments
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