**दीप कोई प्रीत का अंतस जले.
हो चुकी है रात आधी,
घोर तम मावस पले.
इस अमा में दीप कोई,
प्रीत का अंतस जले.
--
हर तरफ खुशियाँ बिछी हैं,
द्वार तोरण से सजे.
आतिशी होते धमाके,
वाद्य मंगल धुन बजे.
कौन देता ध्यान उनपर,
भूख से मरते भले.
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बाल दे इक दीप कोई,
रौशनी भी हो यहाँ.
झोपड़ी को राह तकते,
घिर चूका है कहकशाँ.
लूटते सारी ख़ुशी वो,
काट सकते जो गले.
--
शोषणों का दौर है ये,
मान बिकता है यहाँ,
आदमी ही आदमी के,
दाम गिनता है यहाँ.
न्याय कब मिल पायेगा,
वो हाथ यूँ कब तक मले.
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इक तरफ तो है दिवाली,
रात काली इक तरफ.
इक तरफ है स्वर्ण पूजा,
श्रम उपासक इक तरफ.
बेबसी का दौर कैसा,
क्यों दलित पदतल दले.
--
प्रीत की बारिश कभी,
होगी नहीं इस द्वीप में.
बूँद स्वाती की कभी,
क्या आएगी इस सीप में.
मोतियों की आश में हैं,
कौन उन सबको छले.
**हरिवल्लभ शर्मा
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार , हौसला बढ़ाते रहें, मार्गदर्शन देते रहें .सादर.
आदरणीय shardindu mukerji आपकी स्नेहिल प्रति क्रिया पाकर गौरवान्वित हुआ ,आपकी कसौटी पर बना रहूँ आपके मार्गदर्शन वगैर कठिन है..स्नेह बनाये रखें ..मैं कोशिश जारी रखूँगा.हार्दिक आभार आपका.
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra साहब रचना पर स्नेहिल टीप कर उत्साहित्कारने हेतु हार्दिक आभार...कृपया स्नेह बनाए रखें.
इक तरफ तो है दिवाली,
रात काली इक तरफ.
इक तरफ है स्वर्ण पूजा,
श्रम उपासक इक तरफ.
बेबसी का दौर कैसा,
क्यों दलित पदतल दले. आदरणीय हरिवल्लभ जी बहुत ही पसन् आयी ये रचना ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी आपकी स्नेहिल टीप से निश्चित ही हौसला बढ़ा है...हार्दिक आभार आपका.
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी आपका हार्दिक आभार रचना पर आपका स्नेहिल अनुमोदन मिला , कृपया स्नेह बनाए रखे.
शोषणों का दौर है ये,
मान बिकता है यहाँ,
आदमी ही आदमी के,
दाम गिनता है यहाँ.
न्याय कब मिल पायेगा,
वो हाथ यूँ कब तक मले.......बहुत सही लिखा आपने. आज का समय कुछ यही कहता है, बधाई स्वीकारें आदरणीय हरी जी
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