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गज़ल : वो कहानी है नहीं.

हट गया तूफ़ान जुल्मत वो कहानी है नहीं.

हो गये आज़ाद हम सब अब गुलामी है नहीं.

फूट के कारण हमेशा लुट रहा हिन्दोस्तां,

बँट गए टुकड़े अलहदा एकनामी है नहीं.

ये मुसल्माँ वो है हिन्दू धर्म ये किसने गढ़े,

भेद इंसानों में करते धूप पानी है नहीं.

स्वर्ण पंछी देश था ये जानता सारा जहाँ,

आज वो वैभव पुनः पाने की ठानी है नहीं.

मुल्क को नीलाम करते देश के गद्दार ये,

कोई नेता देश सेवक खेजमानी है नहीं.

 **हरिवल्लभ शर्मा 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by harivallabh sharma on October 16, 2014 at 7:29pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब उत्साहित करती आपकी टीप का हार्दिक स्वागत..हार्दिक आभार .स्नेह बनाये रखें,सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 16, 2014 at 7:07pm

यकीनन अब मानीखेज नेता न रहे i सुन्दर i सादर i

Comment by harivallabh sharma on October 16, 2014 at 1:03pm

आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.

Comment by harivallabh sharma on October 16, 2014 at 1:01pm

आदरणीय somesh kumar जी हार्दिक आभार आपका, उत्साहवर्धन कर अनुग्रहीत किया .स्नेह बनाये रखें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 16, 2014 at 8:05am

बहुत ही सुंदर गजल, आदरणीय हरिबल्लभ जी. दिली बधाइयाँ आपको

Comment by somesh kumar on October 15, 2014 at 10:59pm

सुंदर एवं दिलकश रचना 

Comment by harivallabh sharma on October 15, 2014 at 8:39pm

आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी उत्साहित करती हुयी आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत एवं हार्दिक आभार आपका.

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 15, 2014 at 8:02pm
बहुत सुन्दर ग़ज़ल बनी है आदरणीय हरी वल्लभ शर्मा जी , बधाई .

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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