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ग़ज़ल: लौ मचलती रही.

साँस चलती रही, आस पलती रही.

रात ढलने तलक, लौ मचलती रही.

 

वादियों में दिखी, ओस-बूँदें सहर,

चाँदनी रात भर, आँख मलती रही.

 

कुछ हसीं चाहतों की तमन्ना लिए,

जिन्दगी आँसुओं से बहलती रही.

 

मैं समझता हुयी उम्र पूरी मगर,

मौत जाने किधर को टहलती रही.

 

इक उगा था कभी चाँद मेरे फ़लक,

जुगनुओं को यही बात खलती रही.

 

वो सुनी थी कभी बांसुरी की सदा,

ज़िंदगी रागनी में बदलती रही.

 

मैं अकेला समझ दूर चलता गया,

याद उसकी मगर साथ चलती रही.

 

तेल सारा जला जा रहा दीप का,

उम्र बाती लगातार जलती रही.

 

मौसमी धूप थी सूर्य तपता रहा,

हिमशिला देह कतरों पिघलती रही.

.

 **हरिवल्लभ शर्मा दि. 26.11.2014

 (रचना मौलिक स्वरचित एवं अप्रकाशित है)

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Comment by harivallabh sharma on December 5, 2014 at 3:07pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ग़ज़ल पर निर्देशित सुधार किया गया है..आपका सादर आभार.

Comment by harivallabh sharma on December 5, 2014 at 2:52pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ग़ज़ल पर उत्साहित करती आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत..कृपया स्नेह बनाये रखें. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 2, 2014 at 1:38am
शानदार ग़ज़ल है। क्या लय है। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये।
Comment by harivallabh sharma on November 29, 2014 at 2:51pm

आदरणीय Ketan Kamaal साहब  मेरी बह्र ...२१२,२१२.२१२.२१२. है..इसमें ओस की बूँदें ..की बूँदें  भी २२२ हो जाता है...इस वजह से ओस  बूँदें  लिया है..जो अर्थ में स्पष्ट भी हो रहा है...मात्रा पतन से बचने का प्रयास भी किया है..फिर आप गुणीजन की जैसी सलाह हो.

 

Comment by Ketan Kamaal on November 29, 2014 at 10:53am

Abhi Kahan Kaafi kamzor hai koshish achchi hai kahi kahi sentence adhure lag rahe hai 

Jaise yaha 

बादियों में दिखी, ओस बूँदें सहर,

AUS KI aana chahiye jo nahin aaya jo achche shayar hai unhe khoob padhiye aur unhone jis tarah se sher kahe hai un par gaur kariye baaki sab khairiyat

Comment by harivallabh sharma on November 28, 2014 at 10:43pm

आदरणीय Rahul Dangi जी बहुत आभार आपने स्नेहिल टिप्पणी से हौसला बढाया,..स्नेह बनाये रखें...सादर.

Comment by harivallabh sharma on November 28, 2014 at 10:41pm

आदरणीया sarita panthi जी आपकी अनुकूल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार...सादर.

Comment by harivallabh sharma on November 28, 2014 at 10:40pm

आदरणीय Hari Prakash Dubey जी आपकी अनुकूल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार...सादर.

Comment by harivallabh sharma on November 28, 2014 at 10:38pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर साहब आपका कुशल मार्गदर्शन ग़ज़ल पर मिला ग़ज़ल की बारीकियां बहुत दूर हैं मुझसे आपके सानिद्य में जरुर तरक्की करूँगा..शेअर को इस तरह कहा जाए तो ठीक होगा क्या? कृपया मार्गदर्शन दें.

"तेल सारा जला जा रहा दीप का,

वक़्त बाती लगातार जलती रही."...या ..उम्र बाती बहुत देर जलती रही...

Comment by harivallabh sharma on November 28, 2014 at 10:25pm

आदरणीय ram shiromani pathak जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार.

कृपया ध्यान दे...

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