साँस चलती रही, आस पलती रही.
रात ढलने तलक, लौ मचलती रही.
वादियों में दिखी, ओस-बूँदें सहर,
चाँदनी रात भर, आँख मलती रही.
कुछ हसीं चाहतों की तमन्ना लिए,
जिन्दगी आँसुओं से बहलती रही.
मैं समझता हुयी उम्र पूरी मगर,
मौत जाने किधर को टहलती रही.
इक उगा था कभी चाँद मेरे फ़लक,
जुगनुओं को यही बात खलती रही.
वो सुनी थी कभी बांसुरी की सदा,
ज़िंदगी रागनी में बदलती रही.
मैं अकेला समझ दूर चलता गया,
याद उसकी मगर साथ चलती रही.
तेल सारा जला जा रहा दीप का,
उम्र बाती लगातार जलती रही.
मौसमी धूप थी सूर्य तपता रहा,
हिमशिला देह कतरों पिघलती रही.
.
**हरिवल्लभ शर्मा दि. 26.11.2014
(रचना मौलिक स्वरचित एवं अप्रकाशित है)
Comment
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ग़ज़ल पर निर्देशित सुधार किया गया है..आपका सादर आभार.
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ग़ज़ल पर उत्साहित करती आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत..कृपया स्नेह बनाये रखें. सादर.
आदरणीय Ketan Kamaal साहब मेरी बह्र ...२१२,२१२.२१२.२१२. है..इसमें ओस की बूँदें ..की बूँदें भी २२२ हो जाता है...इस वजह से ओस बूँदें लिया है..जो अर्थ में स्पष्ट भी हो रहा है...मात्रा पतन से बचने का प्रयास भी किया है..फिर आप गुणीजन की जैसी सलाह हो.
Abhi Kahan Kaafi kamzor hai koshish achchi hai kahi kahi sentence adhure lag rahe hai
Jaise yaha
बादियों में दिखी, ओस बूँदें सहर,
AUS KI aana chahiye jo nahin aaya jo achche shayar hai unhe khoob padhiye aur unhone jis tarah se sher kahe hai un par gaur kariye baaki sab khairiyat
आदरणीय Rahul Dangi जी बहुत आभार आपने स्नेहिल टिप्पणी से हौसला बढाया,..स्नेह बनाये रखें...सादर.
आदरणीया sarita panthi जी आपकी अनुकूल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार...सादर.
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी आपकी अनुकूल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार...सादर.
आदरणीय योगराज प्रभाकर साहब आपका कुशल मार्गदर्शन ग़ज़ल पर मिला ग़ज़ल की बारीकियां बहुत दूर हैं मुझसे आपके सानिद्य में जरुर तरक्की करूँगा..शेअर को इस तरह कहा जाए तो ठीक होगा क्या? कृपया मार्गदर्शन दें.
"तेल सारा जला जा रहा दीप का,
वक़्त बाती लगातार जलती रही."...या ..उम्र बाती बहुत देर जलती रही...
आदरणीय ram shiromani pathak जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार.
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