हौंठ सीं गर्दन हिलाना आ गया.
दोस्त ! जीने का बहाना आ गया.
जिन्दगी में गम मुझे इतने मिले,
अश्क पीकर.. मुस्कुराना आ गया.
ख्वाब सब आधे अधूरे रह गए,
दर्द सीने में ...बसाना आ गया.
दर्द के किस्से सुनाऊँ किस तरह,
गीत गज़लें गुनगुनाना आ गया.
साथ रहने का असर भी देखिये,
आप से बातें छिपाना आ गया.
हादसों ने पाल रख्खा है मुझे.
मौत से बचना बचाना आ गया.
बात मुद्दों पर नहीं हैं आजकल,
देखिये कैसा जमाना आ गया.
चीज हर बिकती मिली है इस शहर,
कीमतें मुझको चुकाना आ गया.
तू मिली तो दर्द गम सब छू हुए,
प्यार में पींगें बढ़ाना आ गया.
**हरिवल्लभ शर्मा
दिनांक.08.09.2014
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय हरि वल्लभ भाई , नाम गलत लिख देने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ , आगे से ख्याल रखूंगा |
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब हार्दिक आभार आपने ग़ज़ल के अशआरों पर स्नेह दिया...नाम हरिवल्लभ की जगह गोपाल भी स्नेहिल है ...बहुत आभार सादर.
जिन्दगी में गम मुझे इतने मिले,
अश्क पीकर.. मुस्कुराना आ गया.
ख्वाब सब आधे अधूरे रह गए,
दर्द सीने में ...बसाना आ गया. - आदरणीय गोपाल भाई , बढ़िया ग़ज़ल और इन दो अशआर के लिए दिली बधाई |
मित्र आदरणीय ram shiromani pathak जी आपका उत्साहवर्धन हमें प्रेरक है...सदा स्वागत आपका.आभार.
आदरणीय Gumnaam pithoragarhi साहब बहुत शुक्रिया आपने हौसला बढाया ...हार्दिक आभार.
आदरणीय Dr. Vijai Shanker साहब आपका प्रतिसाद ग़ज़ल पर मिला आपका हार्दिक आभार.स्नेह बनाये रखें.
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी ग़ज़ल पर आपकी हौसला अफजाई का बेहद शुक्रिया...इतनी सुन्दर समीक्षा कर लगभग हर अशआर को आपका स्नेह मिला...ग़ज़ल सार्थक हुयी आदरणीय बहुत आभार.
वाह, खूबसूरत गजल के लिए बधाई।
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