For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ..रूबरू हम हो गए

खुद ज़रा गर्दन झुकाकर रूबरू हम हो गए.

बंद करली आँख अपनी गुफ़्तगू में खो गए.

वस्ल की जो थी तमन्ना किस क़दर हावी हुयी.

ख्व़ाब में आयेंगे वो इस जुस्तजू में सो गए.

कौन जाने थी नज़र या वो बला जादूगरी.

देख मुझको बीज दिल में इश्क का वे बो गए.

वायदा उनका मकम्मल आज आने को कहा.

आ रहे वादे मुताविक देखते ही वो गए.

वक़्त लेता करवटें जो आज है कल है नहीं.

चार दिन की चांदनी को अब अँधेरे लो गए.

पोंछने आया नहीं वो अश्क आखों से बहे.

आएगा सैलाब कोई इसलिए हम रो गए.

जिंदगानी थी कठिन जो कट गयी तेरे बिना.

जीस्त का ये बोझ सारा हम अकेले ढो गए.

थी बहुत सारी शिकायत दोस्त ऐ तुझसे मुझे.

दाग दिल के थे अनेकों मुस्कुरा कर धो गए.

**हरिवल्लभ शर्मा दि. 16.09.2014

 

Views: 798

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by harivallabh sharma on September 18, 2014 at 10:35pm

आदरणीय Ram Awadh Vishwakarma  जी आपका सुझाव ठीक हो सकता है मगर ली की मात्रा 2 हैं वहां मात्रा पतन करना होगा...जबकि बंद कर लीं आँख अपनीं में दोनों आँखों का ही भास होता है...आपके सुझाव का स्वागत.हार्दिक आभार.

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on September 18, 2014 at 11:52am

आदरणीय बंद करली आँख अपनी गुफ़्तगू में खो गए
एक ही आँख बन्द कर ली या दोनों
मेरी समझ से ऐसा किया जा सकता है।
बंद आँखें करली अपनी गुफतगू में खो गये।

Comment by harivallabh sharma on September 18, 2014 at 1:12am

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब हार्दिक आभार वास्तव में ग़ज़ल का मतला और मक्ता ही ग़ज़ल की जान होते हैं...मेरी को कोशिश को आपने उच्चता प्रदान कर प्रयास पर स्नेह दिया आपका हार्दिक साधुवाद...

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 17, 2014 at 10:44pm

आदरणीय हरि भाई, 

खुद ज़रा गर्दन झुकाकर रूबरू हम हो गए.

बंद करली आँख अपनी गुफ़्तगू में खो गए.

ऊँचाई को छूती ये पंक्तियाँ सब से अलग है ,  और पूरी गज़ल की ज़ान है , परम भक्त भगवान का दर्शन कुछ इसी तरह  करता होगा। 

हृदय से बधाई स्वीकार  करें । 

Comment by harivallabh sharma on September 17, 2014 at 6:25pm

आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी बहुत शुक्रिया.आपने भाव में सहभागी बन ग़ज़ल का मान बढाया आपका हार्दिक आभार 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 17, 2014 at 12:11pm

बहुत ही खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय हरी भाईसाहब. हर एक शे'र के भावों में कुछ अपना सा लगा, बस कलम आपकी. बहुत-२ बधाई आपको

Comment by harivallabh sharma on September 17, 2014 at 12:03pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब ग़ज़ल पर आपका स्नेह मिला..हौसला अफजाई हेतु हार्दिक आभार ..सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 17, 2014 at 11:40am

अच्छी गजल हुई है . मान्यवर .

Comment by harivallabh sharma on September 17, 2014 at 11:06am

आदरणीय Laxman dhami जी ग़ज़ल पर स्नेह दिया...हार्दिक आभार आपका, कृपया स्नेह बनाये रखें.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 10:58am

वस्ल की जो थी तमन्ना किस क़दर हावी हुयी.

ख्व़ाब में आयेंगे वो इस जुस्तजू में सो गए.

बहुत खूब .....................

आदरणीय भाई हरिवल्लभ  जी l इस  सुन्दर ग़ज़लके लिए  हार्दिक बधाई स्वीकारें .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service