2122,2122,212
सह सके ना फूल के टकराव को.
हैं मुकाबिल झेलने सैलाव को.
थामना पतवार सीखा है नहीं.
हैं चले खेने बिफरती नाव को.
हौसला उनका झुकाता आसमां.
आजमाते पंख के फैलाव को.
हर सफलता चूमती उनके कदम,
आजमाते वक़्त पर जो दाव को.
भाव उनके भी गिरेंगे एक दिन,
भूल जाते हैं सरे सद्भाव को.
.
हरिवल्लभ शर्मा दि. 04.01.2015
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय Dr. Ashutosh Mishra जी आपने ग़ज़ल पर स्नेहिल प्रतिक्रिया देकर हौसला बढाया ..हार्दिक आभार आपका.
आदरणीय khursheed khairadi साहब आपके प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार.
आदरणीय सुबेसिंह सुजान जी आपका हार्दिक आभार आपने हौसला बढाया.
आदरणीय दिनेश कुमार जी आपका हार्दिक आभार आपने ग़ज़ल पर हौसला बढाया.
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी आपका हार्दिक आभार ग़ज़ल पर आपका प्रोत्साहन मिला..सादर
आदरणीय ram shiromani pathak जी आपका हार्दिक आभार सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु...सादर.
हौसला उनका झुकाता आसमां.
आजमाते पंख के फैलाव को.
हर सफलता चूमती उनके कदम,
आजमाते वक़्त पर जो दाव को..आदरणीय हरिवल्लभ जी ..सार्थक सन्देश देती इस शानदार ग़ज़ल के लिये तहे दिल बधाई सादर
हौसला उनका झुकाता आसमां.
आजमाते पंख के फैलाव को.
आदरणीय हरिवल्लभ सर ,सुन्दर प्रस्तुति है |सादर अभिनन्दन |
bhut bhut badhai.....khoob
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