नवगीत..चलता सूरज रहा अकेला
घूमा अम्बर मिला न मेला,
चलता सूरज रहा अकेला.
--
गुरु मंगल सब चाँद सितारे,
अंधियारे में जलते सारे.
बृथा भटकता उनपर क्यों मन,
होगा उनका अपना जीवन.
कोई साथ नहीं देता जब,
निकला है दिनकर अलबेला.
..चलता सूरज रहा अकेला.
--
पीपल के थर्राते पात,
छुईमुई के सकुचाते गात.
ऊषा की ज्यो छाती लाली,
पुलकित हो जाती हरियाली.
सभी चाहते भोजन पानी,
जल थल पर है मचा बबेला.
चलता सूरज रहा अकेला.
--
उड़ते उड़ते थके पखेरू,
कूद रहे घर बंधे बछेरू.
कलरव कोलाहल की धूम.
कुछ तरुओं पर मचा हुजूम.
एक तरफ थी भोर सिंदूरी,
एक तरफ है सुरमई बेला.
चलता सूरज रहा अकेला.
**हरिवल्लभ शर्मा दि. 24.09.2014
Comment
आदरणीय Santilal Karun जी आपकी मधुर प्रतिक्रिया पाकर मन पुलकित हुआ, आपका हार्दिक आभार,कृपया स्नेह बनाये रखें,सादर.
आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी,
पूरा गीत सुमधुर और अर्थवान है , अति सुन्दर , सहृदय साधुवान एवं सद्भावनाएँ --
पीपल के थर्राते पात,
"छुईमुई के सकुचाते गात.
ऊषा की ज्यो छाती लाली,
पुलकित हो जाती हरियाली.
सभी चाहते भोजन पानी,
जल थल पर है मचा बबेला.
चलता सूरज रहा अकेला."
आदरणीया rajesh kumari जी रचना पर आपका स्नेह मिश्रित हुआ ..बहुत प्रोत्साहन दिया आपने आपका सादर आभार...स्नेह बनाये रखें.
आदरणीय khursheed khairadi साहब आपने रचना पर जो स्नेह दिया निश्चित ही हौसला बढ़ा है....आपका हार्दिक आभार ..स्नेह बनाये रखें सादर.
ऐसा प्रवाहमान ,लय प्रधान नव गीत पढने को मिलेगा तो किसका मन झूम नहीं उठेगा ,वाह वाह और सिर्फ वाह ...बहुत बहुत बधाई आ० हरिवल्लभ शर्मा जी |
उड़ते उड़ते थके पखेरू,
कूद रहे घर बंधे बछेरू.
कलरव कोलाहल की धूम.
कुछ तरुओं पर मचा हुजूम.
एक तरफ थी भोर सिंदूरी,
एक तरफ है सुरमई बेला.
आदरणीय हरिवल्लभ जी बहुत सुन्दर गीत है ,सभी बंध सरस है |हार्दिक अभिनन्दन
आदरणीया savitamishra जी हार्दिक आभार आपने रचना को मान दिया...
बहुत सुन्दर
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