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रंग अपना अपना ..

रंग अपना अपना ..

हर आदमी में होता है, रंग अपना अपना ।
उड़ान भर रहे हैं, लेकर के अपनी कल्पना।।
पूरी हुई न अबतक, इस जिंदगी में राहें।
यदि थक गया है कोई, तो भर रहा है आहें।
कुछ और आगे चलने का, रह गया है सपना।।
हर आदमी में होता है .........


कोई कर रहा है पूजा, कोई बन गया जुआरी।
कोई प्रेम का है भूखा, कोई बैर का पुजारी।.
जायका बदलते हैं सब ,ढंग अपना अपना।।
हर आदमी में होता है .........


जो बैरी है किसी का ,वही किसी का साथी।
भौकता है कुत्ता , चलता गया है हाथी।
भाता नहीं है किसको ,ओ संग अपना अपना।।
हर आदमी में होता है .........


वे बाटते हैं जीवन ,सूरज हवा व पानी।
कुछ मांगते किसी से ,ऐसी नहीं कहानी।
दो भाई यों में भी देखा है जंग अपना अपना ।।
हर आदमी में होता है .........


जब जल चढ़ाके कोई, एक भक्त रीझता है।
कोई शराब से ही ,तन मन को सींचता है।
आनंद दोनों को है ,पर रंग अपना अपना।।
हर आदमी में होता है, रंग अपना अपना ।।


------आर .एन . तिवारी

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 14, 2011 at 11:34pm

कोई प्रेम का है भूखा, कोई बैर का पुजारी।.
जायका बदलते हैं सब ,ढंग अपना अपना।।


बहुत खूब , सही है , रंग अपना अपना , सुंदर अभिव्यक्ति .......

 

भौकता है कुत्ता ,चलती गयी है हाथी।
भाता नहीं है किसको ,ओ संग अपना अपना।।


यहाँ हाथी का प्रयोग मेरे समझ से पुलिंग की तरह होना चाहिए था |

 

जब जल चढ़ाके कोई, एक भक्त रीझता है।
कोई शराब से ही ,तन मन को सींचता है।
आनंद दोनों को है ,पर रंग अपना अपना।।

 

बेहद खुबसूरत ख्यालात , बहुत बहुत बधाई इस कृति पर |

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