नहीं राजी हुआ कोई ,मेरा किरदार करने को
बिना क़श्ती के निकला हूँ ,समन्दर पार करने को
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कोई सोये कहीं भूख़ा ,ज़लाये मुल्क़ भी कोई
इन्हें बस वोट लेने हैं, मज़े सरक़ार करने को
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कोई मौजूद था मेरा ,मेरे दुश्मन की महफ़िल में
रची साजि़श उसी ने थी, मुझे गद्दार करने को
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तुम्हारे इक इशारे पर , मेरी ये ज़ान जानीं है
मग़र ज़िन्दा जो रक़्खा हैं,गुनाह स्वीकार करने को
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चली आयी तसव्वुर में , तेरी तस्वीर धुँधली सी
मेरी ये जान बाक़ी है ,फ़क़त दीदार करने को
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Comment
वाह , बहुत खूब ग़ज़ल कही है बधाई
अब जिनकी बेबफ़ाई के चर्चे हैं हर तरफ
बह पहले बफादार थे ये कल की बात है
जिसने लगायी आग मेरे घर में आकर के
बह शख्श मेरा यार था ये कल की बात है
आदरणीय उमेश कटारा भाई , बढ़िया गज़ल कही है , मतला बहुत खूब सूरत है , आपको हार्दिक बधाई ।
आ. उमेश भाई -- गुनाह स्वीकार करने को --- ये मिसरा बे बहर हो गया है , देख लीजियेगा ।
मिथिलेश वामनकर जी आपको ग़ज़ल पसन्द आई आपका तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ
Hari Prakash Dubey जी आपको ग़ज़ल पसन्द आई आपका तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ
आदरणीय उमेश कटारा जी बहुत अच्छी गजल हुई है..... बेहतरीन अशआर है ....शेर दर शेर दाद कुबूल कीजिये
आदरणीय उमेश कटारा जी , सुन्दर रचना ...... नहीं राजी हुआ कोई ,मेरा किरदार करने को
बिना क़श्ती के निकला हूँ ,समन्दर पार करने को...... हार्दिक बधाई स्वीकार करें !
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pratibha tripathi जी आपको ग़ज़ल पसन्द आई आपका तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ
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