For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रोज की तरह ऑफिस में घुसने से पहले उसने झुक कर उस भिखारी को कुछ पैसे दिए बहुत जल्दी में था पर्स पाकेट में रखने की बजाय वहीँ गिर गया जो उस भिखारी ने तुरंत लपक लिया| भिखारी ने देखा कुछ पैसों के साथ पर्स में दो तीन तरह के कार्ड थे|

कुछ देर बाद बाहर के ऑफिस से ऊँची आवाज आवाज आई अरे अरे ये भिखारी अन्दर कैसे आ गया?’ “साब बड़े साहब का ये पर्स गिर गया था सो उसे ही देने आया था”|  “अच्छा अच्छा लाओ मैं दे दूँगा लेते हुए बाबू का  चेहरा चमक उठा|

“साहब इस गमले से एक पत्ता तोड़ लूँ” ? “क्या करेगा पत्ते का..... चाटेगा?? ..”अच्छा ..अच्छा  लेजा जा भिखारी कहीं का और कुछ नहीं मिला तो पत्ता ही मांग लिया हाहाहा....”|भिखारी भारी क़दमों से अपनी जगह पर लौट आया और शाम होने का इन्तजार करने लगा|

 पांच बजे साहब बदहवास सा दौड़ता हुआ उसके पास आया तो उसके बोलने से पहले ही भिखारी पूछ बैठा “साहब पर्स मिल गया” ? साहब बोला “यही तो मैं तुमसे पूछने आया हूँ  सब जगह ढूँढ लिया .. कहीं सुबह तो?? ....”जी साहब यहीं गिरा था” फिर उसने सारी बात बता दी|साहब तुरंत लौट कर दफ्तर के बाबू  के पास पंहुचा और पर्स के विषय में पूछा ….वो अनजान बनकर बोला “साहब क्या आप भी एक भिखारी की बात मान गए जो एक-एक पैसे के लिए,...कटोरा लिए फिर रहा है वो आपका पर्स लौटाएगा" ?

"वो यहाँ नहीं आया न ही मुझसे मिला, झूठा कहीं का...”  भिखारी जो साहब के पीछे खड़ा था बोला “साहब मैं जानता हूँ मेरी बात का तो कोई यकीन नहीं करेगा किन्तु देखिये ये पत्ता बोलेगा”.. फिर उसने अपने कटोरे में से वो पत्ता निकाला  और  कौने में रखे उस गमले में पौधे की डंडी के साथ मिलान किया|

 बाबू की आँखें झुक गई वो साहब के आगे हाथ जोड़ने लगा माफ़ी मांगने लगा अपनी नौकरी की भीख मांगने लगा ..भिखारी जाते जाते  बोला “साहब मैं तो सड़क का एक छोटा सा  भिखारी हूँ पर आपके दफ्तर के अन्दर तो मुझसे बड़े भिखारी बैठे हैं”|

मौलिक एवं अप्रकाशित      

Views: 1162

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 22, 2015 at 10:17am

प्रतिभा त्रिपाठी जी,आपको ये लघु कथा प्रभावित कर पाई मेरा लिखना सफल हुआ आपकी स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया हेतु दिल से बहुत बहुत आभार | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 22, 2015 at 7:13am

कृष्ण सिंह जी,आपको कहानी पसंद आई इस उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु आपका दिल से आभार मेरा लिखना सार्थक हुआ | 

Comment by Krishnasingh Pela on January 21, 2015 at 10:42pm
दिल छू गयी लघुकथा । वाक़ई दफ़्तर के अन्दर और बड़े भिखारी हैं । भिखारी बेचारा कम से कम इमान्दारी से भीख तो माँगता है परंतु लोगों ने तो अब साँस तक ईमानदारी से लेना बंद कर दिया है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ.राजेश जी !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2015 at 8:56pm

आ० जवाहर लाल जी,लघुकथा के अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार आपका | 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 21, 2015 at 8:26pm

जितने बड़ा आदमी, उतना बड़ा भिखारी,.....कहाँ गयी इमानदारी? सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2015 at 11:11am

आ० गिरिराज जी,सच कहा इंसान झूठा हो सकता है प्रकृति नहीं जो हमे बहुत कुछ सिखाती है किन्तु हम ही नहीं सीखना चाहते कहीं किसी फूल को दुसरे की खुशबू चुराते देखा या सुना है ?

आपको ये लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ दिल से आभारी हूँ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2015 at 10:32am

अब इंसान कहाँ सच बोलते हैं आदरणीया राजेश जी , पत्ता ही को बोलना है , और वो बोला भी खूब । बधाइयाँ आदरणीया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2015 at 9:38am

सच कहा प्रिय वंदना, बिना प्रमाण सत्य दम तोड़ देता है ..आपको ये कहानी पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ बहुत- बहुत आभार. 

Comment by vandana on January 21, 2015 at 6:20am

प्रमाण बिना कुछ भी सत्य नहीं माना जाता ....भिखारी का सचेत होना चरित्र को पहचानने की योग्यता होना ....सभी कुछ प्रेरित करती है बहुत बढ़िया लघुकथा 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 20, 2015 at 8:27pm

आ० डॉ० गोपाल नारायण जी, ये लघु कथा आपकी न्यायसंगत समीक्षा से धन्य हो गई सच में इसका कथानक अखबारों तथा इर्द गिर्द के आफिसों से सुनी भ्रष्टाचार में लिप्त ख़बरों से ही तैयार हुआ है ये सफेदपोश भिखारी हैं जिनका कोई ईमान ही नहीं.  आपका हार्दिक आभार आदरणीय.  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service