" वाह !! बहुत खूब रितेश गुप्ता , तुमने संस्था का नाम ऊँचा किया है । हम सबको तुम पर गर्व है । " पीठ थपथपाकर मोहित सर ने जब शाबाशी दी तो रितेश दर्प से भर उठा ।
" सर , सब आपके मार्ग दर्शन का ही नतीजा है । "
" फिर तो मुझे गुरू दक्षिणा भी मिलना चाहिए तुम से । " मोहित सर की बाँछे खिल उठी ।
" क्या बात करते है सर ...? लाखों रूपयों की फीस के बाद अब यह गुरू दक्षिणा भी ___ ...? "
कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीया, सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई आपको ! बाकी गुरुदेव डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर ने कह ही दिया है ! सादर
कांता जी
पंच लाइन पर ही अटक जाती है आप ----- यदि ऐसा कहें-
" क्या बात करते है सर ...? लाखों रूपयों डोनेशन देने के बाद अब यह गुरु-दक्षिणा भी -------...? "
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