रात में फुटपाथ पर इक बेबसी रोती रही,
लोग तो जागे मगर संवेदना सोती रही,
शाम होते ही जमीं पर तीरगी छाने लगी,
आसमानों में सुबह तक रोशनी होती रही,
याद की चादर वो अपने आंसुओं की धार से,
दर्द की कालिख मिटाने के लिए धोती रही,
किसलिए इतनी मशक्कत, जब उसे पीना नहीं
शहद मधुमक्खी न जाने किसलिए ढोती रही
ऐ खुदा तेरी खुदाई का सबब ये भी मिला,
मौत ने काटी फसल और जिंदगी बोती रही।।
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(अतुल)
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आपकी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी शानदार मतला हुआ है एनी शेर भी प्रभाव शाली हैं ,एक दो बात कहना चाहूंगी ....
शाम होते ही जमीं पर तीरगी छाने लगी,
आसमानों में सुबह तक रोशनी होती रही,-----यहाँ आसमानों बहु वचन में लिया गया है जो ठीक नहीं है ,इसको कुछ इस तरह भी कह सकते हो ...आसमा में अल/फिर ...या जो आप ठीक समझे ...वैसे ग़ज़ल में सही शब्द सुब्ह होता है अर्थात २१ ,फिर भी शायर सुबह भी लिख देते हैं
शहद मधुमक्खी न जाने किसलिए ढोती रही----ये शेर बहुत आला दर्जे का है ,किन्तु शहद १२ होगा आपने इसे २१ में बाँधा है
ये कुछ महीन त्रुटी दुरुस्त करलें ग़ज़ल और निखर उठेगी
आपको इस शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत- बहुत बधाई
aadarneeey atul jee behtareen ghazal
किसलिए इतनी मशक्कत, जब उसे पीना नहीं
शहद मधुमक्खी न जाने किसलिए ढोती रही yah sher to kamaal ka hai madhumakkhee to bilkul bhee upyog nahee kartee par shayad ye uske navjaaton ke liye hota hai
याद की चादर वो अपने आंसुओं की धार से,
दर्द की कालिख मिटाने के लिए धोती रही,...yah sher bhee umda hai ..meri taraf se dher saaree badhaaayee sweekar karein saadar
किसलिए इतनी मशक्कत, जब उसे पीना नहीं
शहद मधुमक्खी न जाने किसलिए ढोती रही.......................nihayat hi khoobsoorat priyog kiya hai apne .....
आदरणीय खुर्शीद खैरादी भाई जी, स्नेह बनाए रखें। बहुत—बहुत आभार आपका। सादर
आदरणीय लक्ष्मन धामी भाई, आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह और खुशी हुई। स्नेह बनाए रखें। सादर
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर, अबोध प्रयास को अशीषने के लिए आभार। सादर—अतुल
आदरणीय राहुल दांगी भाई जी, बहुत—बहुत आभार आपका। सादर— अतुल
आदरणीय सुनीता जी, उत्साह बढाने के लिए शुक्रिया, आभार। सादर
आदरणीय मिथिलेश बामनकर भाई, आपके सुझाव और आदेश शिरोधार्य। मैंने पूरी गजल इस मंच पर ही पोस्ट की है, हां! मेरे ब्लाग पर मैंने मतला के साथ असंपादित दो शेर जरूर डाले थे। वाकी के शेर आज जब पूरे कर पाया तो सोचा कि आप सबसे चेक करा लूं। स्नेह सहित अशीषने के लिए आभार, शुक्रिया। सादर—
आदरणीय हरि प्रकाश दुबे सर, स्नेह के लिए शुक्रिया आभार। सादर—
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