बात करता हूं तो बातों में मेरी तनहाई
आंसुओं की तरह आंखों में मेरी तनहाई,
मेरी दहलीज पे जलते हुए चरागों को
आंधी बन करके बुझाती है मेरी तनहाई,
बेवफाई का गिला जब भी किया है मैंने
मुस्कराती है, रुलाती है मेरी तनहाई,
मेरे हिस्से के ये इतवार इन्हें तुम ले लो
मुझे फुर्सत में सताती है मेरी तनहाई,
जिंदगी मौत की राहों पे चला करती है
आईना रोज दिखाती है मेरी तनहाई,
दुश्मनों ने तो हमें वार करके छोड दिया
दोस्ती रोज निभाती है मेरी तनहाई।।
जब भी हमको वो अकेले में देख ले 'मौसम'
भागती—दौडती आती है मेरी तनहाई।।
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- मौलिक व अप्रकाशित
#(अतुल 'मौसम')
Comment
जिंदगी मौत की राहों पे चला करती है
आईना रोज दिखाती है मेरी तनहाई, ------------- लाजवाब ग़ज़ल कही भाई अतुल जी , इस शे र के लिये विशेष बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय भाई सारथी जी, स्नेह बख्शने के लिए तहेदिल से आभार। सादर— अतुल
आंसुओं की तरह आंखों में मेरी तनहाई, क्या गज़ब ! उम्दा है जनाब ...! बहुत बधाई
आदरणीय गोपाल नारायन सर, अबोध को अशीषने के लिए आभार। सादर
जिंदगी मौत की राहों पे चला करती है
आईना रोज दिखाती है मेरी तनहाई,
दुश्मनों ने तो हमें वार करके छोड दिया
दोस्ती रोज निभाती है मेरी तनहाई।।------------------------- सुन्दर रचना i
आदरणीय विजय सर, आशीष बनाए रखिएगा। सादर—अतुल
आदरणीय नरेन्द्र भाईजी, आपका बहुत—बहुत आभार। सादर—अतुल
रचना अच्छी लगी। बधाई।
आदरणीय सोमेश जी. प्रस्तुति पर समय देने के लिए हार्दिक धन्यवाद.हृदय से आभारी हूँ.. सादर
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