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रिक्शा वाला -- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

रिक्शा वाला

************

आपको याद तो होगा

वो रिक्शा वाला

 

गली गली घूमता ,

माइक में चिल्लाता , बताता

आज फलाने टाकीज़ में , फलानी पिक्चर लगी है

पर्चियाँ हवा में उड़ाता

पर्चियों के लिये रिक्शे के पीछे भागते बच्चे

बच्चों को पर्चियाँ छीनते झपटते देख खुश होता

किसी निराश हुये बच्चे को पर्ची कभी अपने हाथों से दे देता

बिना किसी अपेक्षा के , आग्रह के ,

एक जानकारी सब से साझा करता

 

न कोई आग्रह , न अपेक्षा  

और न ही शिकायत

आपके उस टाकीज़ तक न पहुँचने की

 

एक और रिक्शा वाला

पर्चियाँ उड़ाके ये बात साझा करता है

अपेक्षाओं और आग्रहों की ज़मीन में ही

पुष्पित पल्लवित होतीं है,

निराशायें , दुख- तकलीफें  

 

वैसे तो आप स्वतंत्र हैं

अपनी झोली में कुछ भी समेटने के लिये

फूल , कांटे , पत्थर कुछ भी

फिर भी

 

चाहें तो पर्चियाँ सहेजें या चाहें उड़ा दें

रिक्शे वाला फिर आयेगा , दूसरे दिन

उसी उत्साह के साथ

और पर्चियाँ ले के

**********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 27, 2015 at 2:40pm

वैसे तो आप स्वतंत्र हैं

अपनी झोली में कुछ भी समेटने के लिये

फूल , कांटे , पत्थर कुछ भी

फिर भी......., सच! स्वतंत्रता के मायनों में स्वतंत्रता, बहुत स्वतंत्र है. बहुत सुंदर मनन, आदरणीय गिरिराज जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by Shyam Narain Verma on January 27, 2015 at 1:13pm
बहुत ही सुन्दर , बधाई इस प्रस्तुति के लिए आदरणीय
Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 10:44am

वैसे तो आप स्वतंत्र हैं

अपनी झोली में कुछ भी समेटने के लिये

फूल , कांटे , पत्थर कुछ भी

आदरणीय गिरिराज सर सुन्दर शब्द चित्र है |बहुत ख़ूब ...वाह... 

सादर अभिनन्दन |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 27, 2015 at 10:35am

आ० भाई गिरिराज जी क्या सजीव चित्रण किया है उस रिक्शा वाले का ,जो खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में घूमा करते थे केवल टी वि के आने तक और उन दिनों प्रचार का मुक्य स्तम्भ हुआ करते थे ये .पुराने दिनों की  याद ताजा हो गयी .हार्दिक बधाई .

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