ऐ दिल ……
ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान होता है
हर किसी के आगे क्यूँ व्यर्थ में रोता है
कौन भला यहां तेरा दर्द समझ पायेगा
हर अरमान यहां अश्क के साथ सोता है
ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान होता है ……
ये सांझ नहीं अपितु सांझ का आभास है
पल पल क्षरण होते रिश्तों का आगाज़ है
भावों की कन्दराओं में बोलता सन्नाटा है
पाषाणों में कहाँ प्यार का सृजन होता है
ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान होता है ……
ऐ शलभ तू क्यूँ किसी लौ पे आसक्त होता है
क्यूँ अन्धकार में अपना अस्तित्व खोता है
ये दुनिया तो बस इक स्वार्थ की महफ़िल है
खुशी के आवरण में यहाँ तो साथ ग़म होता है
ऐ दिल ! तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान होता है
हर किसी के आगे क्यूँ व्यर्थ में रोता है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील सरना सर ,सुन्दर प्रस्तुति
भावों की कन्दराओं में बोलता सन्नाटा है
पाषाणों में कहाँ प्यार का सृजन होता है
ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान होता है......बहुत खूब ,हार्दिक बधाई ! सादर
नकरात्मकता पर सकरात्मकता की पहल करती एक अच्छी अभिव्यक्ति पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय सरना साहब.
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