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एक सपनों की दुनियाँ में ---- डॉ ० उषा चौधरी साहनी

यूँ ही बस यूँ ही लगता है , 
कभी इस दुनियाँ से निकल जाऊं , 
दूर  बहुत दूर चली जाऊं , 
किसी और दूसरी दुनियाँ में खो जाऊं, 
सपनों  दुनियाँ में चली जाऊं , 
आँखें मूँद लूँ ,  सपने देखूं , 
खूब ढेर  से  सपने देखूं , 
वो चाहे झूठे  ही क्यों न हों , 
कितने ही झूठे , पर देखूं , 
हँसू , खुद पर हँसू , इतराऊँ , 
मुस्कुराऊँ , धीरे से मुस्कुराऊँ, 
अपने में ही  खो जाऊं , 
हक़ीक़त की इस दुनियाँ में 
बहुत बहुत देर से लौटूं , 
हकीकत ही कितनी हकीकत है , 
कितना अफ़साना है , 
सब झूठ है , सब एक फ़साना है
हर झूठ कहाँ बेगाना है , 
हर सच , किसने जाना है।  
वो भी तो  कितना अंजाना है. 
अच्छा है ,किसी  सुहाने से 
सपने में ही खो जाना , 
हकीकत की दुनियाँ से दूर ,
 बहुत दूर चले जाना 
दुनियाँ की दुनियाँ छोड़ कर , 
अपनी दुनियाँ बनाना ,
जब जी चाहे , 
उसी में चले जाना , 
उसी में चले जाना  । 
 
// मौलिक एवं अप्रकाशित //
 

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Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 8, 2015 at 6:44pm

आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , सादर धन्यवाद 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 7, 2015 at 10:19pm

आदरणीय डॉक्टर  उषा चौथरी साहनी जी , सुन्दर रचना ,//

हकीकत ही कितनी हकीकत है , 
कितना अफ़साना है , 
सब झूठ है , सब एक फ़साना है//  .....वाह , हार्दिक बधाई , सादर।

 

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 7, 2015 at 1:18pm

आदरणीय विजय शंकर सर आपके प्रोत्साहन  के लिए सादर धन्यवाद 

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 7, 2015 at 1:16pm

आदरणीय शरदिंदु मुखर्जी जी , रचना को समय देने के लिए सादर धन्यवाद 

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 7, 2015 at 1:10pm

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर जी,आपकी प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद, बात सिर्फ इतनी है कि इस भागम भाग की दुनिया से दूर कही कभी कभी एक अवकाश लिया जाये,बस 

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 6, 2015 at 8:09pm

आदरणीय  श्याम नारायण वर्मा  जी  सादर धन्यवाद, 

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 6, 2015 at 8:08pm

आदरणीय  सोमेश कुमार जी  सादर धन्यवाद,

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 6, 2015 at 8:06pm

आदरणीय  जीतेन्द्र पस्टारिया जी सादर धन्यवाद, 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2015 at 11:39am

सुंदर प्रस्तुति. बधाई आदरणीया डा. उषा जी.

Comment by somesh kumar on February 6, 2015 at 9:59am

गैर नही तेरा अपना ही हूँ /तेरी आँखों का सपना ही हूँ 

सोया हूँ पलक पलंग पर /लाया हूँ कुछ यादे रंगकर 

मत खोलो पलके उड़ जाउँगा /फिर ना मैं वापस आऊँगा |

बहुत पहले लिखी ये पंक्तिया आपकी सपनों की दुनिया के अभिवादन में स्वीकर करें |इस रचना प्रयास पर बधाई |

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