// मौलिक एवं अप्रकाशित //
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आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय गिरी राज भंडारी जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय राजेश कुमारी जी, प्रोत्साहन के लिए सादर धन्यवाद।
विरह की पीड़ा को सुन्दरता से उकेरा है प्रस्तुति में ..हार्दिक बधाई उषा जी
आदरणीया डॉक्टर उषा चौधरी साहनी जी , आपकी ये रचना पढ़कर बरबस ये रचना याद आ जाती है .....चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए...इस दिल पे लगाके ठेस...
जाने वो कौन सा देश...जहाँ तुम चले गए......सुन्दर , बधाई आपको !
आदरणीया ऊषा जी , अंतस की पीड़ा हर शब्द में मुखर है , बहुत सुन्दर रचना , बहुत बधाई ॥
आदरणीया ऊषा जी
मैं भी सादर i विजय सर की बात सी सहमत हूँ i इस रचना में between the lines भी बहुत कुछ है I
आदरणीय विजय शंकर जी , जो कहने का प्रयास किया इन पंक्तियों के माध्यम से ,आपके कमेंट से लगा कि कुछ सफलता प्राप्त हुई है। इस प्रोत्साहन लिए आपका सादर धन्यवाद।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , इस प्रोत्साहन लिए आपका सादर धन्यवाद।
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