सुनते आये हैं, सारी नज़ाकत
कायनात को हम नारियों से मिली है ,
बीर बहूटी को मखमल ,
गुलाब को लाली, हमीं से मिली है ,
कायनात खुद कहीं-कहीं बेइंतहा सख्त है ,
चट्टान है, आंधी है , धूल है , तूफ़ान है,
फिर भी गुलाब हैं, तितलियाँ हैं, चाँद है,
चाँदनी है, ठंडी हवाएँ हैं , नदियों में चढ़ाव है.
ये कठोर कायनात की ही करामात है ,
हमारी मासूमियत पर रोज़ ये ग्रहण लगाता कौन है.
हमारी मासूमियत हमसे चुराता कौन है,
बचपन से हमको हरदम डराता कौन है,
ये चेहरे पे…
Posted on February 24, 2015 at 10:45am — 18 Comments
Posted on February 22, 2015 at 9:35am — 9 Comments
Posted on February 8, 2015 at 7:30pm — 14 Comments
Posted on February 5, 2015 at 10:30pm — 14 Comments
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Comment Wall (11 comments)
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आदरणीय राजेश कुमारी जी, आपके प्रोत्साहन के लिए सादर धन्यवाद।
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी सादर धन्यवाद।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , मेरी रचना को सराहने के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद।
आदरणीय गोपाल नारायन सर , मेरी रचना पर अत्यंत सकारात्मक टिप्पणी के लिए आपका सादर धन्यवाद।
आदरणीय जीतेन्द्र पस्टारिया जी सादर धन्यवाद
आदरणीय जीतेन्द्र पस्टारिया जी सादर धन्यवाद,
आदरणीय सोमेश कुमार जी सादर धन्यवाद,
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी रचना को सराहने के लिए सादर धन्यवाद
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी,आपकी प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद, बात सिर्फ इतनी है कि इस भागम भाग की दुनिया से दूर कही कभी कभी एक अवकाश लिया जाये,बस
आदरणीय विजय शंकर जी आपके प्रोत्साहन के लिए सादर धन्यवाद
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