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( ग़ज़ल )- ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर खोजिये ---- गिरिराज भंडारी

ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर  खोजिये

********************************

 

122    122    122    12

जहाँ ग़म  न हो ऐसा घर  खोजिये

जो हँसता मिले , बामो दर खोजिये

 

कोई  बाइसे  ज़िंदगी  भी  तो  हो

इधर  खोजिये  या उधर   खोजिये

 

बाइसे  ज़िंदगी = ज़िन्दगी का कारण

 

गिरा एक क़तरा था सागर में कल

ज़रा जाइये   अब  असर  खोजिये

 

अँधेरा , यक़ीनों  से  हटता   नहीं

जलें आप खुद , तब सहर खोजिये

सहर = सवेरा

 

अगर  आपका शाना  सूखा है  तो

ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर  खोजिये

 

शाना- कांधा , चश्मे तर = गीली आंखें

 

जहाँ से  अकेले ही  जाना है  जब

भला किस लिये हम सफ़र खोजिये

 

निडरता   हमेशा  सही  भी  नहीं

ख़ुदा का ज़रा दिल में डर  खोजिये

 

ख़ुदा का करम ही तो है सीमो ज़र

भला क्यूँ  कहीं अब गुहर खोजिये

 

सीमो ज़र=धन दौलत, गुहर = कीमती पत्थर

 

जमीं,  आसमाँ  से  बहुत  दूर  है

मुझे  नीचे  खोजें , अगर  खोजिये  

*******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2015 at 10:11am

आदरणीय दिनेश कुमार भाई , हौसला अफज़ई का तहेदिल से शुक्रिया ।

Comment by दिनेश कुमार on February 10, 2015 at 5:59am
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, आदरणीय गिरिराज सर जी। क्या कहने है! वाह वाह! सभी शे'र बेहतरीन।
अँधेरा , यक़ीनों से हटता नहीं
जलें आप खुद , तब सहर खोजिये ..... Kya baat hai
जहाँ से अकेले ही जाना है जब
भला किस लिये हम सफ़र खोजिये ...BAHUT KHOOB

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:47pm

आदरणीय आशुतोष भाई , आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया के लिये आपका हार्दिक आभार ।


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Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:46pm

आदारणीय उमेश भाई , आपका आभार ।


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Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:46pm

आदरणीय गुमनाम भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


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Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:45pm

आदरणीया  प्रतिभा जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से  शुक्रिया ॥


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Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:43pm

आदरणीय खुरशीद भाई , आप जैसे गज़ल कार से सराहना पाना , तमगे से कम नही है , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


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Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:42pm

आदरणीय अरुण भाई , गज़ल पर आपकी उपस्थिति ही उत्साह वर्धन के लिये काफी है , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 8:28pm

कोई  बाइसे  ज़िंदगी  भी  तो  हो

इधर  खोजिये  या उधर   खोजिये..ये तो करना ही पड़ेगा ..बेहतरीन 

गिरा एक क़तरा था सागर में कल

ज़रा जाइये   अब  असर  खोजिये.....प्रभाव तो होगा ही लेकिन कितनी पैनी निगाहों की जरूरत है 

अगर  आपका शाना  सूखा है  तो

ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर  खोजिये,,,,वाकई सही 

जहाँ से  अकेले ही  जाना है  जब

भला किस लिये हम सफ़र खोजिये.....क्या बात है लाजबाब 

निडरता   हमेशा  सही  भी  नहीं

ख़ुदा का ज़रा दिल में डर  खोजिये......ये वो शेर है जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया 

 

ख़ुदा का करम ही तो है सीमो ज़र

भला क्यूँ  कहीं अब गुहर खोजिये.....काश दुनिया ये समझ पाए 

 जमीं,  आसमाँ  से  बहुत  दूर  है

मुझे  नीचे  खोजें , अगर  खोजिये ....बड़प्पन है ये आपका 

हर शेर उम्दा है .बिबिध भावों को समाविष्ट किये इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by umesh katara on February 8, 2015 at 8:04pm

बहुत उम्दा गजल 

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