ग़लत कोई और है , हम क्यों बदलें
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बैलों का स्वभाव उग्र होता है , प्रकृति प्रदत्त
होना भी चाहिये
बिना उग्रता के भारी भारी गाड़ियाँ नहीं खींची जा सकती
जो उसे जीवन भर खींचना है
बिना शिकायत
गायें ममता मयी , करुणा मयी होतीं है
गायों की थन से बहता दूध ,
दर असल उसकी ममता ही है ,
अमृत तुल्य , कल्याण कारी
गायें उग्र नहीं होतीं
प्रकृति जिसे धारिता के योग्य बनाती है , उसे सहन शक्ति भी देती है
गायें घरों में पाली जातीं हैं
उग्रता की कोई खास ज़रूरत भी नहीं पड़ती , अपनों के बीच
उग्रता अगर है तो
इनकी उग्रता परिस्थिति जन्य होती है
कुछ गायें घरों की चारदीवारी से बहर निकल जातीं है
उग्रता इनको सीखनी पड़ती है
प्रक़ृति प्रदत्त करुणा को दबा कर किसी कोने में
बाहरी दुनिया में जीने के लिये ज़रूरी भी है , उग्रता
मुझे डर है करुणा को दबाये जाने से उसकी मौत का
वैसे भी बहुत अन्दर दब जाना मौत से कम भी तो नहीं है
निष्क्रियता ही तो मौत है
और सांड स्वभाव से मरखंडे होते हैं
होना पड़ता है ,
इनका कहना है , ये हमारी मज़बूरी है
बे सलीका , बेसहारा , आवारा बाज़ारों में छोड़ देंगे
तो होना ही पड़्ता है , मरख़ंडा , क्योंकि
ज़रूरतें तो इनकी भी हैं ,
छीनेगा झपटेगा , मारेगा किसी को और खायेगा
चाहे डंडे खुद को भी खाना पड़े
जीवन मिला है तो जियेंगे भी ,
जब तक नही मरे हैं
ग़लती तो उनके मालिकों की है ,
बिना संस्कारित किये जो आवारा छोड़ दिये हैं ,
बिना किसी इंतज़ाम के
गलत हर स्थिति में गलत है , और दंडनीय भी
स्थिति विकट है
कानून सजा का भय दे सकता है , परिवर्तन नहीं
और बदलाव ,
बदलाव तो बहुत आंतरिक है
व्यक्तिगत है
हर बदलाव ये साबित करता है , हम पीछे ग़लत थे
या हम ग़लत हैं ये मान लें तो ही बदलाव संभव है
और ग़लत हम हैं नहीं ,
ग़लत तो कोई और है
तो सुधरना भी तो किसी और को होगा न
हम क्यों बदलें ॥
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , आपके अनुमोदन से रचना कर्म सार्थक हुआ । सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ।
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार ।
मुझे डर है करुणा को दबाये जाने से उसकी मौत का
वैसे भी बहुत अन्दर दब जाना मौत से कम भी तो नहीं है
निष्क्रियता ही तो मौत है
लाक्षणिक बिम्बों ने इस रचना को बड़ा ही कलात्मक बना दिया है आदरणीय गिरिराज भाईजी.
तनिक कसावट की दरकार थी लेकिन यह रचना सटीक है. हार्दिक बधाई.
सादर
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर बहुत शानदार रचना है ....
गलत हर स्थिति में गलत है , और दंडनीय भी
स्थिति विकट है
कानून सजा का भय दे सकता है , परिवर्तन नहीं
और बदलाव ,
बदलाव तो बहुत आंतरिक है
व्यक्तिगत है......सुन्दर दर्शन से परिपूर्ण रचना , हार्दिक बधाई सर ! सादर
आदरणीय बागी भाई जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
आवश्यकता अनुसार प्रकृति ने सारी व्यवस्थायें की हुई हैं यह अलग बात है कि हम उनतक न पहुँच सके या न समझ सकें, अच्छी रचना हुई है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय गिरिराज भाई साहब.
आदरणीय खुर्शीद भाई , रचना को आपका अनुमोदन मिला तो रचना कर्म सार्थक हुआ । आपका हृदय से आभार ॥
गायें ममता मयी , करुणा मयी होतीं है
गायों की थन से बहता दूध ,
दर असल उसकी ममता ही है ,
अमृत तुल्य , कल्याण कारी
आदरणीय गिरिराज सर , सुन्दर प्रस्तुति है |विचारोत्तेजक .......सादर अभिनन्दन |
आदरणीय मिथिलेश भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका दिली शुक्रिया ।
आदरणीय गिरिराज सर, बिम्ब और प्रतीकों के माध्यम से गूढ़ बिन्दुओं को साझा करती सुन्दर प्रस्तुति के लिए हृदय से बधाई निवेदित है.
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