आधी रात
चांदनी और छाँव
तस्करों का हरा-हरा गाँव
जालिमो में कुछ अधेड़
कुछ तरु, कुछ वृक्ष, कुछ पेड़
कुछ घर थे गरीबों के भी
दांतों के बीच जीभों के भी
सचमुच बदनसीबों के भी
आधी रात
चांदनी और छाँव
सन्नाटे में डरा-डरा गाँव
एक गरीब बुढ़िया के द्वार
तेजी से आया इक घुड़सवार
बुढिया की बेटी को उठाया
बेरहमी से अश्व पर चढ़ाया
फिर उस जीव को वापस भगाया
आधी रात
चांदनी और छाँव
बूढ़ी आँखों से झरा-झरा गाँव
रोज ही यह सब होता
कौन कहाँ तक रोता ?
बुझी आँख में नींद न समायेगी
जानती वह सुबह पूर्व आयेगी
कभी-बेरहम जवानी ढल जायेगी
आधी रात
चांदनी और छाँव
काला-स्याह मरा-मरा गाँव
आंख से निकलता मोती है सच्चा
बेटी की गोद में नन्हा सा बच्चा
जग से शायद टूट गया नाता
भारत में ऐसी भी होती है माता
अब कोई घुड़सवार नहीं आता
आधी रात
चांदनी और छाँव
दर्प अभिमान से भरा-भरा गाँव
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आ० मिश्र जी
आपके स्नेह का आभारी हूँ i सादर i
आदरणीय हरिप्रकाश जी
आपकी अनुशंसा से अभिभूत i सादर i
आदरणीय गोपाल सर .. आपकी यह रचना अत्यंत गंभीर है ..रचना के आगे बढ़ने के साथ साथ दृश्य बदलते जा रहे हैं ..इस अद्भुत प्रयोग हेतु आपको ढेर सारी बढ़ायी सादर
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर , गज़ब // आधी रात
चांदनी और छाँव
तस्करों का हरा-हरा गाँव
जालिमो में कुछ अधेड़
कुछ तरु, कुछ वृक्ष, कुछ पेड़//...... भारत में ऐसी भी होती है माता
अब कोई घुड़सवार नहीं आता....वाह ....सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई सर , सादर !
आदरणीय भंडारी जी /अनुज
कविता में कहानी का प्रयोग आपकी संस्तुति से मेरे संतोष का उपादान बनती हुयी i सादर i
आ० खुर्शीद जी
आपका आभार कैसे व्यक्त करूं i सादर अभिवादन i
आदरणीय बागी जी
आपकी संस्तुति पाकर मन को संतुष्टि मिली i आपके स्नेह यूँ ही मिलता रहे यही कामना है i सादर i
आ० श्याम नारायन वर्मा जी
आपका बहुत बहुत आभार i
आ० विजय सर !
आपके समर्थन से हृदय आश्वस्त हुआ i सादर i
आदरणीय बड़े भाई , बहुत मार्मिक कहानी को आपने कविता का रूप दिया है , पूरा मंज़र खींच दिया आपने ! वाह ! हार्दिक बधाइयाँ ।
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