For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- राम नहीं रावण देखा है

राम नहीं रावण देखा है
कलियुग का सज्जन देखा है

माली के ही हाथों उजड़ा
ऐसा भी उपवन देखा है.

काँप गया हूँ भीतर तक मैं
जबसे ये दर्पण देखा है

ढूँढ़ रही है बूढ़ी आँखें
क्या तुमने बचपन देखा है ?

हमने घर के बँटवारे में
रोता ये आँगन देखा है.

दिल का मोर खुशी को तरसे
इसने कब सावन देखा है

दूर कहीं अब धरती के संग
हम ने नील गगन देखा है

धनवानों का अक्सर मैंने
निर्धन अन्तर्मन देखा है

-- दिनेश कुमार १५/०२/२०१५

( मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 657

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 18, 2015 at 12:01pm

आ० भाई  दिनेश  जी सुन्दर प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई l

Comment by Pari M Shlok on February 18, 2015 at 10:15am
सभी आशार बेहतरीन लगे

दिल का मोर खुशी को तरसे
इसने कब सावन देखा है

हमने घर के बँटवारे में
रोता ये आँगन देखा है....दिल को छू गए ये अशआर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2015 at 8:19pm

आदरणीय दिनेश भाई जी , बहुत बढिया गज़ल हुई है , सभी अश आर अच्छे लगे । आपको तहे दिल से मुबारकबाद ॥ आदरणीय सौरभ भाई जी के कहे का ध्यान ज़रूर रखें ॥

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 17, 2015 at 7:02pm

अच्छा प्रयास है दिनेश जी। दाद कुबूल कीजिए

Comment by दिनेश कुमार on February 17, 2015 at 12:49pm
भाई मिथिलेश जी, बहुत बहुत शुक्रिया। इस बह्र पर पहली कोशिश थी।
Comment by दिनेश कुमार on February 17, 2015 at 12:44pm
आदरणीया Mohinichordia ji , बहुत शुक्रिया। आभार व्यक्त करता हूँ कि आप ने मेरी रचना को सराहा।
Comment by दिनेश कुमार on February 17, 2015 at 12:41pm
हरिप्रकाश भाई जी, बहुत शुक्रिया
Comment by दिनेश कुमार on February 17, 2015 at 12:34pm
आदरणीय सौरभ सर जी, हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया। मुझे इस विषय में बहुत सीमित जानकारी है। आप ठीक ही कहते हैं कि काफिया स्तर पर यह गजल खारिज हो सकती है। मेरे पास check करने का कोई साधन नहीं है आदरणीय। अगर आप मार्गदर्शन करें तो मेहरबानी होगी।
Comment by दिनेश कुमार on February 17, 2015 at 12:25pm
सर्वेश कुमार जी, बहुत शुक्रिया। आभार
Comment by दिनेश कुमार on February 17, 2015 at 12:20pm
शुक्रिया आदरणीय विजय शंकर जी। हौसला अफजाई के लिए आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service