अब्बाजान के गुजरने के बाद मेरे हिस्से में जो विरासत आयी उसमें पुरानी हवेली के साथ बाबाजान की चंद ट्राफियाँ और मेडल भी थे जिन्हे अब्बुजान हर आने जाने वाले को बड़े शौक से दिखाते थे। मगर हमारे ख्वाबो की शक्ल अख्तियार करती नयी हवेली की सुरत से ये निशानियाँ बेमेल ही थी लिहाजा 'ड्राईंग रूम' से 'स्टोर रूम' का रास्ता तय करती हुयी ये निशानियाँ, जल्दी ही कबाड़ी गफ़ूर चचा की अल्मारियो की शान बन गयी।..........
अब्बुजान की पहली बरसी थी। हम बिरादरी के साथ, अब्बु के इंतकाल के बाद पहली बार आयी नजमा आपा को भी अपनी नयी शानो-शौकत दिखा कर खुश कर देना चाहते थे। बाकी का तो पता नही मगर आपाजान खुश नही लग रही थी।
आखिर उनके वापस लौटने का वक्त भी आ गया।
"आपा शायद आप हमसे खफा है, क्या 'बिदाई' में कुछ कमी रह गयी या पुरानी हवेली को नयी शक्ल देकर हमने गलत किया।" कुछ उदासी से मैंने पूछा।
"जफर।पुरानी इमारत को वक्त के साथ बदलने में कोई हर्ज नही मगर इसमें रहने वाले भी दीवारी सजावटो की तरह बदल जाये ये जरूर अफसोस की बात है।" आपा की आवाज में दर्द था।
"और हाँ जफर, बिदाई का गम मत करना। मेरी 'बिदाई' गफ़ूर चचा ने मुझे भाईजान की 'विरासत' लौटा कर दे दी है।" आपा अपनी बात पुरी करके जा चुकी थी। और मैं बुत्त बना खड़ा रह गया।
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'विरेन्दर वीर मेहता'
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
AADHARNIYA DR.GOPAL NAARYAN SHREEVAASTAV JI...AAP KI MERI RACHNA PAR UPASTHITI HI ME LIYE KISI PURASKAAR SE KAM NAHI HAI. MERI AUR SE HAARDHIK DHANAYAVAAD SAWEEKAR KARE AUR RACHNA ME SUDHAAR KI JAROORAT HO TO AVASHAY MAARGDARSHAN KARE.
आदरणीय विरेन्दर वीर मेहता जी एक अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई निवेदित है ....
AADHARNIYA JITENDER PASTAARIYAJI RACHNA PAR AAPKI DI GAYI AMULYA TIPPANI AUR PROTHSAAHAN KE SHABADO KE LIYE MAI AAP KA AABHAARI HU.
"AAJ KE SAMAY ME AADHUNIKTA KI DAURR ME LOG APNI AISI KAI PURAANI VIRAASATO KO GHAR SE BAAHAR KA RAASTA DIKHANE SANKOCH NAHI KARTE BHALE HI VE KITANI HI MAHATAVPURAN KYU NA HO"
निस्संदेह एक अच्छी लघु कथा i
आज के भौतिक परिवर्तन के दौर में , केवल संजोने वाले हाथों को ही तो विरासत का महत्व पता है. बहुत सुंदर प्रस्तुति, आदरणीय वीर जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें
Aadharniya Hari Prakash Dubey ji laghukath par drishti daalne aur sundar pratikiriya karne ke liye aap ka tahe dil se aabhaar.
सुन्दर ,मार्मिक लघुकथा ,हार्दिक बधाई आदरणीय 'विरेन्दर वीर मेहता' जी !
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