For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फिर हुआ सागर-मंथन

नए कल्प में

इस बार रत्न निकले तेरह   

देवता व्यग्र ! विष्णु हैरान !

कहाँ गया अमृत-घट ?

 

समुद्र ने कहा

अब वह जल कहाँ

जिसमे होता था अमृत

जिसे मेरी गोद में

डालती थी गंगा

जिससे भरता था घट

 

अब तो शिव ने भी

दो टूक कह दिया है 

नहीं करेंगे वे शिरोधार्य

गंगा को

अलबत्ता पियेंगे उसके उदक को

और धारण करेंगे

उसे निज कंठ में

हलाहल की भांति ---उफ़ --!

 

 (मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 507

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 28, 2015 at 12:22pm

आ० विजय सर !

आपका कथन सही है i अब अमृत मिल भी जाये तो असुर ही उसका पान करेंगे  i आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभारी हूँ i  सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 28, 2015 at 12:21pm

आ० हरि प्रकाश जी

आपका स्नेह सदैव मिलता है i आपकी तीप से सतत लेखन की प्रेरणा मिलती है i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 28, 2015 at 12:18pm

आ 0 कृष्णा मिश्र 'जान '

आपकी प्रतिक्रिया से ही आपकी प्रतिभा का परिचय मिल रहा है i आपका आभार  i सस्नेह i

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 28, 2015 at 10:46am
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी, कलयुग में क्या होगा अमृत के मिलने से , कब्जा जिनका होगा उम्र भी उन्हीं की बढ़ेगी, भले लोगों को न अमृत मिलेगा न अनंत उम्र , इसलिए अमृत का न होना ही सार्थक है। प्रदूषण को चित्रित करती आपकी रचना को प्रणाम , आपको बधाई, सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on February 28, 2015 at 10:08am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर बहुत सुन्दर 

अब तो शिव ने भी

दो टूक कह दिया है 

नहीं करेंगे वे शिरोधार्य

गंगा को

अलबत्ता पियेंगे उसके उदक को

और धारण करेंगे

उसे निज कंठ में

हलाहल की भांति ---उफ़ --!.........इस रचना और अद्भुत कल्पना पर बधाई आपको ! सादर 

 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 28, 2015 at 9:40am

वाह! आदरणीय...!क्या आपकी कल्पना का समुद्र है...जिसमे से यह 'सागर मंथन' रुपी अमृत बहार आया है....बिल्कुल सही वर्णन किया है,,आपने आज की गंगा की दयनीय स्थिति का..मै हैरान हूँ  आपके अंदर का इतना युवा सोच का रचनाकार देखकर..जो प्रदूषण के मुद्दे को इस तरह उत्तम भाव से उठा रहा है..नए लेखकों को आपसे सीख़ लेनी चाहिए कि समाज और सामाजिक सरोकारों से कैसे जुड़े...इश्क़-मुहबब्त रोजी-रोटी का दर्द तो कोई भी कह लेता है..पूरे मानवसमाज से जुड़ने वाले कम ही होते है..आपकी उर्जा को प्रणाम..बार बार वंदन आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service