नारी बरसों से देवी तुल्य कहलाती है
मगर यह बात मुझे अचंभित कर जाती है
केवल कागजों में छपी हैं यह कागज़ी बातें
सच्चाई मगर.. कुछ और बयां कर जाती है
चीखें दबी -दबी सी ,साँसे घुटी. घुटी सी
पथराई आँखें बदहवास सी नज़र आती है
रुदन को गुप्त रख स्मित बरसाती है
निशब्द सी धडकनें डरकर रह जाती है
जज्बात उसके सदा सहमें से लगते हैं
घरोंदे में छुपकर वह जीवन बिताती है
सिंदूर में रंग कर रक्तिमा कहलाए जब
लाल सूरज सी बिंदिया बेहद जलाती है
नारी बरसों से देवी तुल्य कहलाती है
मगर यह बात मुझे अचंभित कर जाती है
( मौलिक और अप्रकाशित )
डिम्पल गौड़ ' अनन्या '
Comment
आपकी प्रतिक्रिया बहुत प्रोत्साहित करती है...सादर आभार आदरणीय डॉक्टर विजयी शंकर जी |
आदरणीया डिम्पल कौर जी इस सुन्दर रचना पर बधाई आपको !
सिंदूर में रंग कर रक्तिमा कहलाए जब
लाल सूरज सी बिंदिया बेहद जलाती है ...सुन्दर
नारी बरसों से देवी तुल्य कहलाती है
मगर यह बात मुझे अचंभित कर जाती है
सारी बातें सत्य हैं..और इसी लिए नारी देवी कहलाती है..जिस दिन ये गुण नही रहेंगे ..फिर तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी..प्रणाम आदरणीय!!बधाई!
धन्यवाद आ. महर्षि त्रिपाठी जी |
मेरी रचना की सराहना करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ..आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी |
बहुत अच्छी रचना आ.डिम्पल जी,,,,आपको बधाई|
आ 0 अनन्या जी
सुन्दर विचार i एक अच्छी प्रस्तुति i सादर i
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online