For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल : तू रात की रानी है (गणेश जी बागी)

          221-1222-221-1222

पत्थर से तेरे दिल को मैं मोम बना दूँ तो 
चिंगारी दबी है जो फिर उसको हवा दूँ तो.

इस शहर में चर्चे हैं तेरे रूप के जादू के
मैं अपनी मुहब्बत का इक तीर चला दूँ तो.

क्या नाज़ से बैठी हो फागुन के महीने में
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.

तुम कहते हो होली में इस बार न बहकूँगा
गुझिया व पुओं में मैं कुछ भंग मिला दूँ तो.

गर जेल मुहब्बत है, आजाद नहीं होना 
ता उम्र सजा दे दो जो नींद उड़ा दूँ तो.

ये बात समझ लेना चाहत है मेरी सच्ची
सपनों में अगर आकर रातों को जगा दूँ तो.

 
तू रात की रानी है मैं फूल कनेला हूँ 
कैसा वो समां होगा, दोनों को मिला दूँ तो ?
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : प्रीत

Views: 1083

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on May 4, 2015 at 6:07pm

बहुत बढ़िया गजल बागीजी, बहुत-बहुत बधाई होली गुझिया, पुआ और भंग के संग !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 4, 2015 at 4:49pm

आदरणीय बागी जी ..आपकी लघुकथाएं हे पढता आ रहा हूँ आज ग़ज़ल पढी ..बहुत आनंद आया .गुदगुदाती हुई ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by नादिर ख़ान on April 15, 2015 at 1:22pm

आदरणीय गणेश जी खूबसूरत तरही गज़ल के लिए ढेरों शुभकामनायें ।

सभी  शेरों के साथ  गिरह का शेर भी क्या खूब बन पड़ा है ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 2, 2015 at 11:09pm

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय शिज्जू भाई जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 2, 2015 at 11:08pm

आपकी सकरात्मक प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 2, 2015 at 11:07pm

सराहना और प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया डॉ प्राची जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 2, 2015 at 11:06pm

प्रिय सोमेश जी, सराहना युक्त प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार, इस मंच पर मैंने पहले भी ग़ज़ल कही है हां यह अवश्य है कि अंतराल कुछ अधिक हो जाता है.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 2, 2015 at 11:03pm

आदरणीय मिथिलेश भाई जी, आपकी मुहब्बतों के लिए शुक्रिया, आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया मुग्धकारी है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2015 at 10:53am

वाह्ह्ह्हह्ह कमाल है ..... आपकी कोई पहली ग़ज़ल पढ़ रही हूँ आ० गणेश जी ,वो भी इतनी मखमली विबग्योर रंगीली क्या कहने

तू रात की रानी है मैं फूल कनेला हूँ 
कैसा वो समां होगा, दोनों को मिला दूँ तो ?---लाजबाब 

सभी शेर शानदार हुए किसी एक की क्या बात करनी तहे दिल से दाद कबूलिये बस .

Comment by umesh katara on March 2, 2015 at 7:50am

तू रात की रानी है मैं फूल कनेला हूँ 
कैसा वो समां होगा, दोनों को मिला दूँ तो ?वाह सर वाह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service