मैं हिला तक नहीं हूँ
उस जगह से
जहाँ तुमने छोडा था कभी
तुम लौट आये हो
कौनसा रास्ता आया है
लौटकर मुझ तक
खैर ! तुम्हारा कोई दोष नहीं है
तुम्हारे लौट आने में
ये रास्ते ही ऐसे हैं
घूम फिर कर
फिर आ पहुँचते हैं वहीं
जहाँ से चले थे कभी
राह से भटके हुये
ये भटकते हुये रास्ते
तुम लौट ही आये हो
तो कुछ देर आराम करलो
निकल जाना सुबह होते होते
फिर किसी भटकते हुये रास्ते के साथ
रोज कई रास्ते निकलते हैं
पर मैं तुम्हें
अकेला नहीं छोड सकता हूँ
एक पल को मेरे घर में
क्योंकि मैं तुम्हारे
स्वभाव से परिचित हूँ
मैं भूला नहीं हूँ
वो पहली मुलाकात
तुमने अपनी आँखों से ही
मुझे मुझसे अलग कर दिया था
और ले गये थे अपने साथ
क्या मुझे मुझको लौटाने आये हो
नहीं ! नहीं !
मुझे तो तुम अपने पास ही रखो
अब मैं मेरा क्या करुंगा
मैं खुश हूँ उन उपहारों के साथ
जो तुमने दिये थे मुझको कभी
अकेलेपन की जिन्दगी
आँसूओं की बहती सरिता
विरह की आग से उठता ज्वालामुखी
अँधेरा ही अँधेरा
तुम्हारे इन उपहारों का सहारा न होता
तो जीवन अर्थहीन हो जाता
कोई अपने दिये उपहारों को
लौटकर लेने नहीं आता
तुम भी न ले जाना इन उपहारों को
कल मैं तुम्हें फिर
विदा करुंगा
पहले की तरह
फिर किसी
भटकते हुये रास्ते के साथ
हो सके तो
तुम फिर चले आना मेरे पास
राह से भटके हुये किसी रास्ते से
भटकते हुये
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय pratibha tripathi जी शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी शुक्रिया
बहुत सुन्दर कविता , आदरणीय हार्दिक बधाइयाँ ॥
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी शुक्रिया
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी शुक्रिया
बहुत ही सुंदर. अपना पूर्ण प्रभाव छोडती पंक्तियाँ, बधाई स्वीकारें आदरणीय उमेश जी
आदरणीय उमेश कटारा जी सुन्दर रचना है , हार्दिक बधाई आपको सर ! सादर
आदरणीय khursheed khairadi जी आप जैसे प्रबुद्धजनों की संगत का ही असर है
वरन मैं नाचीज क्या हूँ साद आभार
खैर ! तुम्हारा कोई दोष नहीं है
तुम्हारे लौट आने में
ये रास्ते ही ऐसे हैं
घूम फिर कर
फिर आ पहुँचते हैं वहीं
जहाँ से चले थे कभी
राह से भटके हुये
ये भटकते हुये रास्ते
आदरणीय उमेश साहब ,सुन्दर भावाभिव्यक्ति है |इन पंक्तियों में 'मैं' को मेरा से अलग दिखाकर एक सार्थक और नवीन द्वंद रचा है आपने ...क्या ख़ूब...अब मैं मेरा क्या करूंगा ...
तुमने अपनी आँखों से ही
मुझे मुझसे अलग कर दिया था
और ले गये थे अपने साथ
क्या मुझे मुझको लौटाने आये हो
नहीं ! नहीं !
मुझे तो तुम अपने पास ही रखो
अब मैं मेरा क्या करुंगा
सादर अभिनन्दन |
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी बहुत बहुत शुक्रिया
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