मेरी बन्द मुट्ठी में
कसमसाता हुआ आसमान
मुझे छोड दो
बाकी आसमान तुम्हारा है
तलवों से ढ़की धरती
मुझे छोड दो
बाकी धरती तुम्हारी है
मेरे माथे की तीनों लकीरें
तुम्हारे झुँझलाते हुये उन प्रश्नों
का उत्तर हैं
जो किये थे तुमने
मेरे हारते समय
बर्षों से बन्द मेरी जुबान
शायद गल चुकी है
अब इसे तनिक भी हिलाया
तो टूट जायेगी
तुम्हारे नाम के सिवाय
इसे कुछ बोलना नहीं था
मगर तुमने इसकी
इजाजत न दी
तो गल गयी मुँह में रखी रखी
मेरी कराहती हुयी
लाल ढ़ोरे पडी आँखों से
निकलता हुआ दरिया
तेज बहाव पर है
तुम मत आना अभी
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ० कटारा जी
अति सुन्दर i वाह i
आदरणीय उमेश कटारा जी, बहुत बढ़िया हार्दिक बधाई , सादर !
आदरणीय Pari M Shlok जी शुक्रिया
आदरणीय़ krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी सादर आभार
भावना का अतिरेक! आपको बधाई!सादर!
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