पूरी कॉलोनी वालों की बेफ़िक्र नींद का राज़ था - रानी, वो पालतू न होते हुए भी कॉलोनी में रात के समय भौंक भौंक कर, किसी भी अपरिचित को नहीं घुसने देती थी. बदले में कॉलोनी के लोग भी रानी को खाने के लिये कुछ न कुछ दे देते थे. समय के साथ रानी ने गर्भधारण भी किया, लेकिन उन दिनों में उसकी थकान के बाद भी उसे खाने को कम ही मिलता. जब उसे प्रसव पीड़ा आरम्भ हुई, तब भी वो अकेली थी. उसने पांच बच्चों को जन्म दिया, प्रसव के पश्चात्, रानी को बड़ी तेज़ भूख लगी, लेकिन आज उसके पास खाने को किसी ने कुछ रखा ही नहीं था. इंसानों की कॉलोनी में जब सुबह हुई तो कॉलोनी के कई व्यक्ति रानी के पास आकर उसके चारों सुंदर बच्चों को सहलाते हुए कह रहे थे.. “ अब हमारी कॉलोनी चारों तरफ से सुरक्षित रहेगी..”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
बहुत मार्मिक लघु कथा ..मानव स्वार्थ की पराकाष्ठा है ये लघु कथा प्रभव छोड़ने में सफल है ...अपने बच्चों को खाते हुए खुद मैंने भी देखा है इसके पीछे कारण क्या है ये तो समझ से परे है क्यूंकि सिर्फ भूख मैं नहीं कह सकती खाना देने के बावजूद ऐसा होते देखा मैंने .बहुत बहुत बधाई इस सफल लघु कथा के लिए आपको जितेन्द्र भैय्या .
मन क्लांत हो गया! काश ये लघुकथा नही पढ़ी होती तो बेहतर रहता!!बहुत समय तक मन को झकझोरेगी ये लघुकथा!बधाई!अभिनन्दन!आ० जितेन्द्र जी
आदरणीय गणेश जी का कथन कहावत तक सही है पर सत्य तो इतर है हमनें स्वयं अपनी कालोनी में भूखी कुतिया को अपने मृत शावक को खाते देखा है |लघुकथा पर माँ की विडम्बना और मृत होंते मानवीय मूल्यों पर दृष्टीपात करने के लिए बधाई
आदरणीय हरिप्रकाश जी. :)) आपकी प्रथम प्रतिक्रिया पढ़कर मैंने ही लघुकथा को पुन: पढ़ डाला. आपका कहना सही है काम की व्यस्तता में सब कुछ हो जाता है. आपकी पुन: उपस्थिति हेतु आपका आभारी हूँ
सादर!
आदरणीय मिथिलेश जी. लघुकथा पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का सदैव इन्तजार रहता है. आपके अंतर से मिली सराहना पाकर, बहुत ख़ुशी मिली. आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
आदरणीया महिमा जी. लघुकथा पर आपकी उपस्थिति व् सराहना पाकर ख़ुशी मिली. आपका आभारी हूँ
सादर!
आपकी स्नेहिल सराहना पाकर, रचना धन्य हुई आदरणीय डा.विजय जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ.
सादर!
आदरणीया प्रतिभा जी. आप लघुकथा के मर्म तक पहुंची, रचना की सार्थकता का प्रमाण है. आपका ह्रदय से आभार
सादर!
आदरणीय महर्षि भाई जी, सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार
सादर!
आदरणीय डा.गोपाल जी, रचना पर आपके स्नेहिल आशीर्वाद के लिए ह्रदय से आभारी हूँ.
सादर!
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