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पूरी कॉलोनी वालों की बेफ़िक्र नींद का राज़ था - रानी,  वो पालतू न होते हुए भी कॉलोनी में रात के समय भौंक भौंक कर,  किसी भी अपरिचित को नहीं घुसने देती थी.  बदले में कॉलोनी के लोग भी रानी को खाने के लिये कुछ न कुछ दे देते थे. समय के साथ रानी ने गर्भधारण भी किया, लेकिन उन दिनों में उसकी थकान के बाद भी उसे खाने को कम ही मिलता.  जब उसे प्रसव पीड़ा आरम्भ हुई, तब भी वो अकेली थी. उसने पांच बच्चों को जन्म दिया,  प्रसव के पश्चात्, रानी को बड़ी तेज़ भूख लगी, लेकिन आज उसके पास खाने को  किसी ने कुछ रखा ही नहीं था. इंसानों की कॉलोनी में जब सुबह हुई तो कॉलोनी के कई व्यक्ति रानी के पास आकर उसके चारों सुंदर बच्चों को सहलाते हुए कह रहे थे.. “ अब हमारी कॉलोनी चारों तरफ से सुरक्षित रहेगी..”

 

  

  जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by rajesh kumari on March 3, 2015 at 2:34pm

बहुत मार्मिक लघु कथा ..मानव स्वार्थ की पराकाष्ठा है ये लघु कथा प्रभव छोड़ने में सफल है ...अपने बच्चों को खाते हुए खुद मैंने भी देखा है इसके पीछे कारण क्या है ये तो समझ से परे है क्यूंकि सिर्फ भूख मैं नहीं कह सकती खाना देने के बावजूद ऐसा होते देखा मैंने .बहुत बहुत बधाई इस सफल लघु कथा के लिए आपको जितेन्द्र भैय्या .

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 2, 2015 at 11:46pm

मन क्लांत हो गया! काश ये लघुकथा नही पढ़ी होती तो बेहतर रहता!!बहुत समय तक मन को झकझोरेगी ये लघुकथा!बधाई!अभिनन्दन!आ० जितेन्द्र जी

Comment by somesh kumar on March 2, 2015 at 11:32pm

आदरणीय गणेश जी का कथन कहावत तक सही है पर सत्य तो इतर है हमनें स्वयं अपनी कालोनी में भूखी कुतिया को अपने मृत शावक को खाते देखा है |लघुकथा पर माँ की विडम्बना और मृत होंते मानवीय मूल्यों पर दृष्टीपात  करने के लिए बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 10:24pm

आदरणीय हरिप्रकाश जी. :)) आपकी प्रथम प्रतिक्रिया पढ़कर मैंने ही लघुकथा को पुन: पढ़ डाला. आपका कहना सही है काम की व्यस्तता में सब कुछ हो जाता है. आपकी पुन: उपस्थिति हेतु आपका आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 10:18pm

आदरणीय मिथिलेश जी. लघुकथा पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का सदैव इन्तजार रहता है. आपके अंतर से मिली सराहना पाकर, बहुत ख़ुशी मिली. आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 10:14pm

आदरणीया महिमा जी. लघुकथा पर आपकी उपस्थिति व् सराहना पाकर ख़ुशी मिली. आपका आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 10:12pm

आपकी स्नेहिल सराहना पाकर, रचना धन्य हुई आदरणीय डा.विजय जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 10:10pm

आदरणीया प्रतिभा जी.  आप लघुकथा के मर्म तक पहुंची, रचना की सार्थकता का प्रमाण है. आपका ह्रदय से आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 10:07pm

आदरणीय महर्षि भाई जी, सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 10:06pm

आदरणीय डा.गोपाल जी, रचना पर आपके स्नेहिल आशीर्वाद के लिए ह्रदय से आभारी हूँ.

सादर!

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