2212 / 2212 / 2212 / 2212----- (इस्लाही ग़ज़ल) |
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दिल खोल के हँस ले कभी, ऐसी कहाँ तस्वीर है |
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यारो चमन की आजकल इतनी कहाँ तकदीर है |
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झूठे निवालों में यहाँ, कटती सभी की जिंदगी |
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इस मुल्क के हालात की बोलो अगर तद्बीर है |
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अक्सर सियासत में यही जुमले चले है आजकल |
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"ये तो मसाइल है मगर, फिर भी कहाँ गंभीर है" |
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भाटा हुआ जो रात को, फिर ज्वार कब सुबहा हुआ |
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सीने में अब अपने समंदर सी कहाँ तासीर है |
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वैसे पलट के बोल दे, हर बात जो दिल को लगे |
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चुपचाप सुनते है फ़क़त, ये आपकी तौकीर है |
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हमसे कहा था आपने, ये आपकी सरकार है |
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ये है हकीक़त या किसी के ख्वाब की ताबीर है |
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बारूद है बन्दूक है या मजहबी फरमान है |
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ये मौत का सामान भी तो दमबदम तामीर है |
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अब तो मुकम्मल ज़िन्दगी, हर एक को मिलती नहीं |
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जिस हाथ में है रोटियाँ, उस पाँव में जंजीर है |
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लो, क़त्ल भी मेरा हुआ, कातिल मुझे माना गया |
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तफ्तीश भी मेरी हुई, मुझको मिली ताज़ीर है |
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कैसे ग़ज़ल अपनी कहूँ, इसमें कई परछाइयाँ |
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है दाग़ भी, ग़ालिब कहीं या तो कहीं पे मीर है |
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ये है यकीं ‘मिथिलेश’ वो, अब क़त्ल करके जाएंगे |
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ये दोसती की आड़ है, वो हाथ में शमशीर है |
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बह्र-ए-रजज़ मुसम्मन सालिम |
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अर्कान –मुस्त्फ्यलुन / मुस्त्फ्यलुन / मुस्त्फ्यलुन / मुस्त्फ्यलुन |
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वज़्न – 2212 / 2212 / 2212 / 2212 |
Comment
अब तो मुकम्मल ज़िन्दगी, हर एक को मिलती नहीं |
जिस हाथ में है रोटियाँ, उस पाँव में जंजीर है |
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लो, क़त्ल भी मेरा हुआ, कातिल मुझे माना गया |
तफ्तीश भी मेरी हुई, मुझको मिली ताज़ीर है |
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कैसे ग़ज़ल अपनी कहूँ, इसमें कई परछाइयाँ |
है दाग़ भी, ग़ालिब कहीं या तो कहीं पे मीर है आदरणीय मिथिलेश जी ,उम्दा ग़ज़ल हुईं है |शेर दर शेर दाद कबूल फरमावें |आदरणीय गिरिराज जी ने सही फ़रमाया है गुरु-शिष्य के स्थान पर मित्र-बंधू की परम्परा सही है |इस ग़ज़ल के कई अशआर कई मायनों में नायब हैं |ग़ज़ल में बैचैनी \बेकली शबाब पर है ,जो शेरीयत को आला तसव्वुर के साँचे में ढालती है |बधाई आपको |सादर अभिनंदन | |
आदरणीय अजय शर्मा जी, सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार , बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय नीरज नीर जी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय Shyam Mathpal जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
bahut hi umda gazal hui hai .....hardik ....shubhkamnaye
वाह बहुत सुंदर गजल हुई है... हार्दिक बधाई ...
Aadarniya vamankar Ji,
Woh-- Woh ek-ek shabd padh kar anand aa gaya. Aapne moti ki mala piro di... di ki gaharaion ko choo gaee.
Bahut bahut badhai.
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