For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - छग्गन तेरी फसलें....(मिथिलेश वामनकर)

22--22—22--22--22—2

 

दिल्ली से जो बासी रोटी आई है

अपने हिस्से में केवल चौथाई है

 

बातें क्या है, बातें बस चतुराई हैं

बातों में देखो कितनी गहराई है

 

मंहगाई की डायन कैसे भागेगी ?

तुमने भी तो चिल्लर से झड़वाई है

 

उम्मीदें क्या लोगों से करते, जिनके

आँखों में डर,  होठों पे तुरपाई है  

 

अफसर दौरे पे अक्सर कह जाते हैं

छग्गन तेरी खेती तो हरियाई है

 

अब के गाँवों में जाओ गर, तो देखो 

क्या रिश्तों में पहले-सी गरमाई है

 

आज सफलता के अंधे क्या समझेंगे

शुष्क नयन की ममता क्यूँ पथराई है

 

आईनों ने जब भी ठाना है अक्सर

दीवारों की हड्डी तक चटकाई है

 

झूठी है बाबुल के आँगन की मस्ती  

सहमी डोली, सहमी सी शहनाई है

 

अब तो काबिल कहलाता है, केवल वो

इज्जत जिसने दौलत से तुलवाई है

 

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------

Views: 976

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 4, 2015 at 9:52pm
आदरणीया वंदना जी सराहना हेतु हार्दिक आभार।
Comment by vandana on March 4, 2015 at 8:53pm

उम्मीदें क्या लोगों से करते, जिनके

आँखों में डर,  होठों पे तुरपाई है  

बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 4, 2015 at 2:53pm
आदरणीया परी जी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।
Comment by Pari M Shlok on March 4, 2015 at 1:49pm
हमें ग़ज़ल बहुत सुन्दर लगी .. बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 4, 2015 at 12:19am
ग़ज़ल की त्रुटियों को सुधारने का प्रयास किया है। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 3, 2015 at 10:42pm

ये न कहिये दिनेश भाई .. एक ग़ज़ल में आप बेहतरीन कमाल कर चुके है-

सुब्ह से शाम हम कमाते हैं
तब भी मुश्किल से घर चलाते हैं

ये विरासत में हमको सीख मिली
हम तो मेहनत की रोटी खाते हैं

Comment by दिनेश कुमार on March 3, 2015 at 10:32pm
हाँ, भाई मिथिलेश जी, सभी टिप्पणियों को ध्यान से पढ़ता हूँ। त्रुटियां शायद जल्दबाजी में व सही ध्यान नहीं देने की वजह से ही है। सुझाव भी उत्तम आये हैं। ग़ज़ल बहुत बढ़िया हो जाएगी। पुनः दाद कबूल कीजिए। मेरी शब्दावली सीमित है,मैं ऐसी स्तरीय ग़ज़ल कभी नहीं कह पाऊँगा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 3, 2015 at 10:20pm

आदरणीय दिनेश भाई जी ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ. बहुत बहुत आभार इस स्नेह, सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए .... इस ग़ज़ल पर आदरणीय धर्मेन्द्र सिंह भाई जी ने बहुत अच्छी और मार्गदर्शक प्रतिक्रिया दी है, आप अवश्य पढियेगा, त्रुटियों को बड़ी बारीकी से बताया है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 3, 2015 at 10:16pm

आदरणीय उमेश जी ग़ज़ल पर स्नेह, सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ...

Comment by दिनेश कुमार on March 3, 2015 at 9:40pm
ग़ज़ल के मतले ने ही ग़ज़ल की दिशा अच्छे से तय कर दी थी भाई मिथिलेश जी, बहुत ही उम्दा व्यंग्य अशआर में परिलक्षित हुआ है। हार्दिक दाद कबूल कीजिए भाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आपकी ग़ज़ल में रदीफ़, काफ़िया और बह्र की दृष्टि से प्रयास सधा हुआ है। इसे प्रशंसनीय अभ्यास माना जा…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"सादर , अभिवादन आदरणीय।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"नफ़रतों की आँधियों में प्यार भी करते रहे।शांति का हर ओर से आधार भी करते रहे।१। *दुश्मनों के काल को…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"जय-जय"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"स्वागतम"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Saurabh Pandey's blog post गजल - जा तुझे इश्क हो // -- सौरभ
"आ. सौरभ सर श्राप है या दुआ जा तुझे इश्क़ हो मुझ को तो हो गया जा तुझे इश्क़ हो..इस ग़ज़ल के…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. नाथ जी "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. विजय जी "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. अजय जी "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. समर सर. पता नहीं मैं इस ग़ज़ल पर आई टिप्पणियाँ पढ़ ही नहीं पाया "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. रचना जी "
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service