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बातो  के लच्छे लाये

यारो दिन अच्छे लाये

 

भारत को फिर से तुमने

दिन में नक्षत्र दिखाये  

 

संसार पसारे  आँचल

तुमने बहु नाच नचाये

 

पहले नजरे की ऊंची

अब फिरते आँख चुराये 

 

हम अपना दर्द सुनाते

तुम अपनी जाते गाये

 

दूरागत ढोल सुहाने

जब जाना तब पछताये

 

थे रंक, बनाया राजा

तुम हम पर ही गुर्राये

 

ईश्वर देखेगा तुमको

हम नत है आँख झुकाये

 

उतरेगा यह भी इक दिन

जो परचम हो लहराये 

 

सत्ता मिटती है उसकी

जिसको माँ याद न आये

 

सोया है जिन्न यहाँ पर

जन-तंत्र न यह जग जाए     

 

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 3:09pm

Aadarniya Dr.Gopal Narain shrivastav Sb. Aapko miss kar rahe the.

Aaj kal ke rajniti wa halat par satik rachna.. Sundar shabdon ka prayog.  Dhero badhai... sukriya.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 16, 2015 at 1:37pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , छोटी बह्र में बहुत अच्छी गज़ल कही है , हृदय से बधाइयाँ आपको ।

कृपया ध्यान दे...

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