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जब ज़माना मेरा मुशीर हुआ
लोग हाकिम तो मैं असीर हुआ
तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे
ये समझना तू बेनज़ीर हुआ
जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ
ये खबर है कि मैं फकीर हुआ
बेखबर दिल निगाहे क़ातिल तेज़
सो निशाने पर अब के तीर हुआ
तंग हाली ज़बाँ से झाँके है
कौन कहता है वो अमीर हुआ
(मुशीर-सलाहकार, असीर-कैदी, बेनज़ीर-लाजवाब)
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्रतिभा त्रिपाठी जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया निधि जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय निर्मल नदीम जी आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज सर मैं आपकी सदाशयता का आभारी हूँ स्नेह बनाये रखें
आदरणीया राजेश दीदी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय श्यामनारायण जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय जान गोरखपुरी जी आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय हरिप्रकाश दूबे जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया स्नेह बनाये रखें
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आप जैसे रचनाकार द्वारा प्रशस्ति पाना सदैव हर्ष का कारण होता है आपका तहेदिल से शुक्रिया
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