For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122- 2122- 212

ख़्वाब से डरने लगा हूँ इन दिनों

नींद से मैं भागता हूँ इन दिनों

 

धड़कनें हैं तेज़ राहें पुरख़तर

मैं सँभलकर चल रहा हूँ इन दिनों

 

वुसअते शब बेबसी तन्हाइयाँ

इन अज़ाबों से घिरा हूँ इन दिनों

 

मुझपे भारी है हर इक लम्हा बहुत

फिक्र की तह में दबा हूँ इन दिनों

 

आइना हटकर परे मुझसे कहे

पत्थरों सा हो गया हूँ इन दिनों

 

कोई बतलाये मुझे मैं कौन हूँ

पहले क्या था और क्या हूँ इन दिनों

 

बदहवासी बेख़याली में “शकूर”

राहे फ़र्दा ढूँढता हूँ इन दिनों

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 751

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2015 at 8:31am

आदरणीय मिथिलेश जी रचना आपकी नज़रों से होकर ग़ुज़री यही बहुत है, कई बार निजी व्यस्तता के कारण प्रतिक्रिया देना संभव नहीं हो पाता, आपका हार्दिक आभार रचना की सराहना के लिये।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 9:17pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी ये ग़ज़ल पहले भी पढ़ी थी लेकिन कमेन्ट नहीं दे पाया था.

ग़ज़ल उम्दा और बेहतरीन हुई है शेर दर शेर दिल से दाद हाज़िर है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 19, 2015 at 8:18pm

आदरणीय खुर्शीद जी नवाज़िशों के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया  

Comment by khursheed khairadi on March 14, 2015 at 9:18am

धड़कनें हैं तेज़ राहें पुरख़तर

मैं सँभलकर चल रहा हूँ इन दिनों

 

वुसअते शब बेबसी तन्हाइयाँ

इन अज़ाबों से घिरा हूँ इन दिनों

 आदरणीय शिज्जु  सर ,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,ढेरों दाद कबूल फरमावें |इस शेर पर दिलोजान कुर्बान 

आइना हटकर परे मुझसे कहे

पत्थरों सा हो गया हूँ इन दिनों

 सादर अभिनन्दन |

Comment by maharshi tripathi on March 13, 2015 at 10:12pm

जानकारी देने हेतु शुक्रिया आ.शिज्जु "शकूर" जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 9:09am

आदरणीय  maharshi tripathi ji आपका तहेदिल से शुक्रिया, 

वुसअत- विस्तार, वुसअते शब- रात की व्यापकता
अजाब- मुसीबत या प्रलय, पुरखतर- खतरों से भरा हुआ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 9:07am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 9:06am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 9:05am

आदरणीय जान गोरखपुरीजी आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 9:04am

आदरणीय धर्मेन्द्र जी आपका तहेदिल से शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service