ए-हुस्न-जाना..
दिल नही रहा अब तेरा दीवाना...
अब मुझको आया कुछ आराम है।
कि तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम है।
ए-हुस्न-जाना..
दिल अब तुझसे बेजार है..
हुस्नो-इश्क जबसे बना व्यापर है।
हूँ जिसका मै सिपहसलार बेकार वो दिल का रोजगार है।
ए-हुस्न-जाना..
दूंढ़ ले अब कोई नया ठिकाना...
मालूम मुझको तेरा मकाम है।
के तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम है।
ए-हुस्न-जाना..
छोड़ कफ़स-ए-शम्मा-परवाना...
दुनिया-ए-रू में आ देख क्या आराम है।
मै नहीं! तू नहीं! दर नहीं! हरम नहीं!
कोई है,सब उसी के नाम हैं।
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मौलिक व् अप्रकाशित (c) जान गोरखपुरी
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Comment
यहाँ केवल रूह ही बात नही हो रही है आदरणीय! ''रूहों की दुनिया'' का अर्थ पर मृत्युलोक के रूप में निकलता!
सही कहा आपने आदरणीय मिथिलेश सर! दुनिया-ए-रू का अर्थ चेहरे की दुनिया ही सीधे-सीधे निकलता है!
मै ''दुनिया-ए-रूह'' लिखना चाहता था लेकिन इसका अर्थ ''आत्मा की दुनिया'' यानी मौत के बाद की दुनिया के रूप में निकलता इसलिये दुनिया-ए-रू लिखा, ये मेरे द्वारा ही गढा शब्द है!ऐसा लिखना ही मुझे श्रेयस्कर लगा!! दुनिया-ए-''रू'' ज्यादा बेहतर रहता! आपका हार्दिक आभार आदरणीय!आपके माध्यम से मै जो कहना चाहता था,वो सबके सामने रख सका!!
अपने अनुसार लुगत की गज़ब जुगत लगाई है भाईजी वैसे दुनिया-ए-रू को चेहरे की दुनिया कहना अधिक सही है
आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी, संदर प्रयास है ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर
आदरणीय मिथिलेश जी गीत के रूप में लिखने का प्रयास किया है!
आप जैसे गुनी मेरी रचना पर इतना समय दें यह देख मन हर्षित हुआ!आपके प्रेम का मै आभारी हूँ!! सादर!
आदरणीया rajesh kumari जी रचना पर आपकी उपस्थिति से रचना को मान मिला! लिखना सार्थक हुआ१बहुत बहुत आभार!
छोड़ कफ़स-ए-शम्मा-परवाना...
दुनिया-ए-रू में आ देख क्या आराम है।
भावार्थ- जिस तरह आग की ओर स्वाभाविक रूप से पतंगा अपनी दैहिक कैद के कारण आकृष्ट होता है! आओ इस कैद से मुक्त हो! आत्मिक शांति के संसार में मिले!
ए-हुस्न-जाना = ए मेरी हुस्न रुपी प्रेमिका
दुनिया-ए-रू = आत्मिक संसार या आत्मिक शांति की दुनिया
कफ़स-ए-शम्मा-परवाना= जिस तरह आग की ओर स्वाभाविक रूप से पतंगा अपनी दैहिक कैद के कारण आकृष्ट होता है! आओ इस कैद से मुक्त हो! आत्मिक शांति के संसार में मिले!
किसी के द्वारा पैदा किये गये हालात-ए-तग़ाफुल के निमित्त भाव बढ़िया हैं रचना में .किन्तु मुझे भी मिथिलेश जी के प्रश्नों के उत्तर का इन्तजार है ताकि हमारा भी कुछ ज्ञान वर्धन हो सके|शुभ-शुभ
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