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मालोपमा (उपमा अलंकार का एक भेद )

पुरवा बयार सी

मद भरे ज्वार सी   

फूलो में जवा सी

स्पर्श में हवा सी

महुआ की गंध सी

पाटल सुगंध सी

आमों की बौर सी

करौंदे की झौर सी

नीम की महक सी

पलाश की दहक सी

टूटे मोर पंख सी

पूजागृह के शंख सी

मंदिर के दीप सी

मोती भरी सीप सी

जल भरे डोल सी

विद्युत् कपोल सी

लहराते व्याल सी

दृप्त इंद्रजाल सी

पावस की धार सी

राधा के प्यार सी

पतझड़ के अंत सी

सौरभ बसंत सी

हिम के शृंगार सी

रति के दुलार सी

जीवन में आयी तुम

दृग में समाई तुम

उपमा की माल सी

कैरव की डाल सी  

आह i उन्मादिनी  !

प्रिय मधुवादिनी

स्मृति विशेष हो

अंतस् में शेष हो ---

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by maharshi tripathi on March 20, 2015 at 6:19pm

सुन्दर ,,लयबद्ध कविता हेतु ढेरो बधाई आपको आ, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |

Comment by Shyam Mathpal on March 20, 2015 at 10:55am

आ.गोपालनारायण श्रीवास्तव सा. सुंदर व मधुर शब्दों की माला पिरोई आपने .तहे दिल से बधाई.

Comment by Pawan Kumar on March 20, 2015 at 10:50am

बसन्ती बयार सी
रिमझिम फुहार सी
कुछ नही शेष है
मलोपमा विशेष है
वाह!
आदरणीय सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई, सादर!

Comment by Shyam Narain Verma on March 20, 2015 at 10:43am

 शानदार रचना पर हार्दिक बधाई

 सादर

Comment by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 10:13am

सुपर्ब रचना आदरणीय .. बहुत खूबसूरत उपमाएं दी हैं मन मोह लिया रचना ने ..बड़ी बात है की पदभार असमान होने के बावजूद लय टूटती नहीं है 

कृपया ध्यान दे...

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