चलते चलते ……
1.
एक कतरा
देर तक
बहते बहते
कपोल पर ही सो गया
शायद
अभी इंतज़ार बाकी था
2.
ये अलस्सुब्ह
किसकी नमी को छूकर
बादे सबा आई है
खुली पलक का
कोई ख़्वाब
सिसकता रह गया शायद
3.
तेरे हर वादे पे
यकीं करता रहा
पर तुझे यकीं न आया
मैं हर लम्हा तुझपे
सौ सौ बार मरता रहा
मेरी मौत को भी तूने
मेरी नींद समझा
नज़र भर के भी तूने
न देखा मुझको
गो चहरे से कफ़न
बार बार हटता रहा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना जी , रचना पर आपको हार्दिक बधाई ! सादर
एक कतरा
देर तक
बहते बहते
कपोल पर ही सो गया
शायद
अभी इंतज़ार बाकी था......वाह
आदरणीय सुशील जी ..इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई saadar
नज़र भर के भी तूने
न देखा मुझको
गो चहरे से कफ़न
बार बार हटता रहा..बहुत बढ़िया
आदरणीय Shyam Mathpal जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सबीर कबीर साहिब रचना को आपने सराहा ,आपका हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित त्रुटि पर मेरे ध्यानाकर्षण के लिए तहे दिल से शुक्रिया ,मैं शीघ्र ही इसे संशोधित कर लूँगा। पुनः आपका हार्दिक हार्दिक आभार।
आदरणीय Shyam Mathpal जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय savitamishra जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय vijay nikore जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Shyam Narain Verma जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
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