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अपना मयंक....

ये दर्द था या
स्मृति का संदेश
मैं समझ ही न सका
बस जल भरे नयनों से
उस मयंक में
अपना मयंक ढूंढता रहा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on March 26, 2015 at 12:00pm

आदरणीय    Hari Prakash Dubey रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 26, 2015 at 11:59am

आदरणीय   krishna mishra 'jaan'gorakhpuri रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 26, 2015 at 11:59am

आदरणीय    मिथिलेश वामनकर रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 10:14am

आदरणीय सुशिल सरना सर , कुछ तो सन्देश छिपा लग रहा है आपकी इस रचना मैं , हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 25, 2015 at 10:12pm

स्मृति का संदेश अपनी बात सुन्दर ढंग से कह गया है!हार्दिक बधाई आदरणीय sushil sarna सरजी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 25, 2015 at 7:28pm

सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय सरना जी 

Comment by Sushil Sarna on March 25, 2015 at 6:51pm

आदरणीय   Mohan Sethi 'इंतज़ार'   जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:27am

बहुत खूब ...सादर 

उस मयंक में 
अपना मयंक ढूंढता रहा

कृपया ध्यान दे...

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