अपना मयंक....
ये दर्द था या
स्मृति का संदेश
मैं समझ ही न सका
बस जल भरे नयनों से
उस मयंक में
अपना मयंक ढूंढता रहा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Hari Prakash Dubey रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशिल सरना सर , कुछ तो सन्देश छिपा लग रहा है आपकी इस रचना मैं , हार्दिक बधाई ! सादर
स्मृति का संदेश अपनी बात सुन्दर ढंग से कह गया है!हार्दिक बधाई आदरणीय sushil sarna सरजी!
सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय सरना जी
आदरणीय Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
बहुत खूब ...सादर
उस मयंक में
अपना मयंक ढूंढता रहा
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