For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दाग दार न करे ........

दाग दार न करे ........

बहुत्  हाय हाय मचेगी रे राम सुख ! तुम देखत रहो, इहाँ - बहुत मारामारी होवेगी। ई ससुरी कुर्सी की खातिर हमका न जाने कौन कौन से पहलवानी करनी पड़ेगी। सरकार, आप अपनी बेचैनी से इधर से उधर टहल टहल कर काहे कालीन का दम निकाल रहे हो,राम सुख ने नेता जी से कहा। तुम नाही जानत हो राम सुख -जवान छुकरिया से जियादा  ई कुर्सी पर इहां लोगन की कूद फांद हो  रही है-राम सुख तुनक के बोले-काहे डरत हो सरकार ई कुर्सी को हम एक कपडा से ढक देत हैं तब तो ठीक है न! राम सुख तुम जाके तनिक अपने भेजे का ओवरहालिंग करवाओ तुम कुर्सी पर नहीं हमारी नेतागिरी पर कपड़ा डलवाऒगे-अब बक बक छोडो और बड़िया खुसबूदार धूप अगरबती लाओ हम तनिक ई कुर्सी की पूजा पाठ कर लेवें।  

अबहूँ लात हैं सरकार - ई लयो -राम सुख अगरबत्ती देते हुए बोले। नेता जी ने कुर्सी के आगे अगरबत्ती जला के आरती शुरू कर दी -

जय कुर्सी माता मैया जय कुर्सी माता 

जिस पर कृपा हो तेरी वो पांच वरष पाता 

जय कुर्सी माता…… 

आरती ख़त्म हुई तो सुख राम बोल -सरकार काहे ई बूढ़ी कुर्सी की पूजा करत हो-पांच बरस पहिले जब आये थे तो ई कुर्सी  जवान थी - जैसे ही तुमने जनता की सेवा करने की शपथ खाई तो ई कुर्सी के चहरे पे मुस्कान थी  -फिर   दिन पे दिन, साल पे साल गुजरने लगे-महंगाई की अग्नि से  जनता के चहरे झुलसने लगे -तुमने तो भ्रष्टाचार के कल्पवृक्ष से पाताल से अम्बर तक कुबेर के खजाने से स्वयं को मालामाल कर लिया लेकिन जनता की  हाय से ई कुर्सी के मान को सम्मान को तार तार कर दिया-तनिक गौर से देखो सरकार - ई कुर्सी से लाखों लोगन की आस बंधी है पर तुम्हारे करमन के कारण ई कुर्सी की हालत जीर्ण क्षीण हुई गयी है-ई कुर्सी, जिसपर तुम धम से बैठे हो, ई जनता का सरीर है-देखो पांच साल में   तुम जैसन की  दीमक  वाली सोच ने कुर्सी के हाथ,  पाँव और काया  को अंतिम सांस लेने पर मजबूर कर दिया है-अब का फायदा सरकार अगरबत्ती जलाने का-कुर्सी रूपी जनता अब तुम्हारे  काले सच,काले वायदों की असलियत जान चुकी है - अब ई कुर्सी  भी थक चुकी है-अब इसे तुम्हारी पूजा से भ्रष्टाचार के धुऐं का भान होता  है- आज भी कुर्सी दीवार पर टंगी आज़ादी के  दीवानों की  तस्वीरों पर अपनी जान देती है -जिन्होंने इस पर बैठ कर इसके मान और सम्मान को आसमान की बुलंदी दी-वो जिए तो इसके मान के लिए मरे तो इसके मान के लिए - तुम जैसे धन लोलुप जनता के सेवकों से कुर्सी अब अपने नए जनम से घबराती है - बार बार प्रभु से प्रार्थना करती है कि है! प्रभु मुझे उन सक्षम हाथों में  सौंपना जो अपने वायदों की ओट  में जनता की हाय से मेरा श्रृंगार न करें - दुशासन की तरह " कुर्सी की महिमा" को दाग दार न करे, दाग दार न करे ........जय  हिन्द  

आसन बैठने का नहीं ये कुर्सी मेरे दोस्तों

कर्म क्षेत्र है जीतने का विशवास मेरे दोस्तों

 

 

सुशील सरना 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 702

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on April 2, 2015 at 8:38pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला   जी गद्य रचना पर आपकी मधुर प्रशंसा ने मेरे सृजन  में निहित भावों को जो स्वीकृति प्रदान की है उसके लिए आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on April 2, 2015 at 8:36pm

आदरणीय  जवाहर लाल सिंह  जी गद्य रचना पर आपकी सराहना से मेरे सृजन  को बल मिला है।  आपके स्नेह का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on April 2, 2015 at 8:35pm

आदरणीय  जितेन्द्र पस्टारिया जी गद्य रचना पर आपकी सराहना से मेरे प्रयास को बल मिला है।  आपके स्नेह का हार्दिक आभार। 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 2, 2015 at 10:20am

"अब इस  कुर्सी को तुम्हारी  पूजा  से भ्रष्टाचार के धुंए  का  भान  होता है" - वाह  | इस लघु कथा की पंक्तियाँ पूरी कथा को समझाने में समर्थ है | बहुत बहुत बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2015 at 10:02am

सभी समझते हैं, फिर भी वही गलती करते हैं ...जनता ऊब चुकी है इनके वादों से ...अब तो जनता भी अभ्यस्त हो चुकी है ...कोई फर्क नहीं पड़ता ... राजा राम हो या रावण ...चली तो सीता ही जायेगी ...या कहें - कोई नृप होहि हमें हो हानी ... आपकी अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 2, 2015 at 9:38am

आपकी पहली कोई गद्य रचना पढने को मिली. बहुत सुंदर प्रस्तुति, बधाई सर

Comment by Sushil Sarna on April 1, 2015 at 9:45am

आदरणीय    Hari Prakash Dubey jee प्रस्तुति पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 31, 2015 at 11:22pm

आदरणीय  सुशील सरना सर ,  सुन्दर प्रस्तुति है ,हार्दिक बधाई ! सादर 

"तुमने तो भ्रष्टाचार के कल्पवृक्ष से पाताल से अम्बर तक कुबेर के खजाने से स्वयं को मालामाल कर लिया लेकिन जनता की  हाय से ई कुर्सी के मान को सम्मान को तार तार कर दिया" बहुत बढ़िया !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service