दाग दार न करे ........
बहुत् हाय हाय मचेगी रे राम सुख ! तुम देखत रहो, इहाँ - बहुत मारामारी होवेगी। ई ससुरी कुर्सी की खातिर हमका न जाने कौन कौन से पहलवानी करनी पड़ेगी। सरकार, आप अपनी बेचैनी से इधर से उधर टहल टहल कर काहे कालीन का दम निकाल रहे हो,राम सुख ने नेता जी से कहा। तुम नाही जानत हो राम सुख -जवान छुकरिया से जियादा ई कुर्सी पर इहां लोगन की कूद फांद हो रही है-राम सुख तुनक के बोले-काहे डरत हो सरकार ई कुर्सी को हम एक कपडा से ढक देत हैं तब तो ठीक है न! राम सुख तुम जाके तनिक अपने भेजे का ओवरहालिंग करवाओ तुम कुर्सी पर नहीं हमारी नेतागिरी पर कपड़ा डलवाऒगे-अब बक बक छोडो और बड़िया खुसबूदार धूप अगरबती लाओ हम तनिक ई कुर्सी की पूजा पाठ कर लेवें।
अबहूँ लात हैं सरकार - ई लयो -राम सुख अगरबत्ती देते हुए बोले। नेता जी ने कुर्सी के आगे अगरबत्ती जला के आरती शुरू कर दी -
जय कुर्सी माता मैया जय कुर्सी माता
जिस पर कृपा हो तेरी वो पांच वरष पाता
जय कुर्सी माता……
आरती ख़त्म हुई तो सुख राम बोल -सरकार काहे ई बूढ़ी कुर्सी की पूजा करत हो-पांच बरस पहिले जब आये थे तो ई कुर्सी जवान थी - जैसे ही तुमने जनता की सेवा करने की शपथ खाई तो ई कुर्सी के चहरे पे मुस्कान थी -फिर दिन पे दिन, साल पे साल गुजरने लगे-महंगाई की अग्नि से जनता के चहरे झुलसने लगे -तुमने तो भ्रष्टाचार के कल्पवृक्ष से पाताल से अम्बर तक कुबेर के खजाने से स्वयं को मालामाल कर लिया लेकिन जनता की हाय से ई कुर्सी के मान को सम्मान को तार तार कर दिया-तनिक गौर से देखो सरकार - ई कुर्सी से लाखों लोगन की आस बंधी है पर तुम्हारे करमन के कारण ई कुर्सी की हालत जीर्ण क्षीण हुई गयी है-ई कुर्सी, जिसपर तुम धम से बैठे हो, ई जनता का सरीर है-देखो पांच साल में तुम जैसन की दीमक वाली सोच ने कुर्सी के हाथ, पाँव और काया को अंतिम सांस लेने पर मजबूर कर दिया है-अब का फायदा सरकार अगरबत्ती जलाने का-कुर्सी रूपी जनता अब तुम्हारे काले सच,काले वायदों की असलियत जान चुकी है - अब ई कुर्सी भी थक चुकी है-अब इसे तुम्हारी पूजा से भ्रष्टाचार के धुऐं का भान होता है- आज भी कुर्सी दीवार पर टंगी आज़ादी के दीवानों की तस्वीरों पर अपनी जान देती है -जिन्होंने इस पर बैठ कर इसके मान और सम्मान को आसमान की बुलंदी दी-वो जिए तो इसके मान के लिए मरे तो इसके मान के लिए - तुम जैसे धन लोलुप जनता के सेवकों से कुर्सी अब अपने नए जनम से घबराती है - बार बार प्रभु से प्रार्थना करती है कि है! प्रभु मुझे उन सक्षम हाथों में सौंपना जो अपने वायदों की ओट में जनता की हाय से मेरा श्रृंगार न करें - दुशासन की तरह " कुर्सी की महिमा" को दाग दार न करे, दाग दार न करे ........जय हिन्द
आसन बैठने का नहीं ये कुर्सी मेरे दोस्तों
कर्म क्षेत्र है जीतने का विशवास मेरे दोस्तों
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी गद्य रचना पर आपकी मधुर प्रशंसा ने मेरे सृजन में निहित भावों को जो स्वीकृति प्रदान की है उसके लिए आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी गद्य रचना पर आपकी सराहना से मेरे सृजन को बल मिला है। आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी गद्य रचना पर आपकी सराहना से मेरे प्रयास को बल मिला है। आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
"अब इस कुर्सी को तुम्हारी पूजा से भ्रष्टाचार के धुंए का भान होता है" - वाह | इस लघु कथा की पंक्तियाँ पूरी कथा को समझाने में समर्थ है | बहुत बहुत बधाई
सभी समझते हैं, फिर भी वही गलती करते हैं ...जनता ऊब चुकी है इनके वादों से ...अब तो जनता भी अभ्यस्त हो चुकी है ...कोई फर्क नहीं पड़ता ... राजा राम हो या रावण ...चली तो सीता ही जायेगी ...या कहें - कोई नृप होहि हमें हो हानी ... आपकी अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई
आपकी पहली कोई गद्य रचना पढने को मिली. बहुत सुंदर प्रस्तुति, बधाई सर
आदरणीय Hari Prakash Dubey jee प्रस्तुति पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना सर , सुन्दर प्रस्तुति है ,हार्दिक बधाई ! सादर
"तुमने तो भ्रष्टाचार के कल्पवृक्ष से पाताल से अम्बर तक कुबेर के खजाने से स्वयं को मालामाल कर लिया लेकिन जनता की हाय से ई कुर्सी के मान को सम्मान को तार तार कर दिया" बहुत बढ़िया !
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