For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हीरा हूँ ........'इंतज़ार'

हर हीरा किसी हसीना के
गले का हार नहीं बनता !
हर हसीना के गले को
हीरों का हार नहीं मिलता !

कई हीरे ज़मी में दबे रहते हैं
कोयलों की गोद में
सोये पड़े रहते हैं !
उनको तराशने वालों का
औजार नहीं मिलता !

न कमी हसीना के हुस्न में है
न हीरों की गुणवत्ता में !
बस किस्मत के खेल हैं सारे
किसी को वोह मिल जाते हैं
और हमें प्यार नहीं मिलता !!

***************************

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 705

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 9:20am

आदरणीय मोहन सेठी जी, सुन्दर रचना, ह्रदय से बधाई ,सादर !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2015 at 3:55pm

सुंदर रचना ...बिलकुल सहमत हूँ आपसे सादर 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 24, 2015 at 10:35pm

सुन्दर अभिव्यक्ति!

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on March 24, 2015 at 10:48am
sahee kahaa sundarta se kaha mtira - badhaee
Comment by vijay nikore on March 24, 2015 at 10:47am

रचना अच्छी लगी। बधाई।

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 24, 2015 at 7:45am

आदरणीय  krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी धन्यवाद पसन्दगी के लिये ....बिलकुल सही कहा आपने... भाग्य भी कुछ होता है और वो सब ईश्वरीय शक्ति के अधीन है ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 24, 2015 at 7:42am

आदरणीय somesh kumar जी पसंदगी के लिये आभार ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 24, 2015 at 7:40am

आदरणीय  Dr. Vijai Shanker जी सही है आप की बात ....हसीना भी जोखिम बन सकती है ....इसलिए रूप पर नहीं रूह पे ध्यान केन्द्रित करना जरूरी है ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 24, 2015 at 7:34am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आभार ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 24, 2015 at 7:32am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आप के दार्शनिक उदाहरण से रचना को स्वीकृति मिलगई ..बहुत बहुत धन्यवाद ...सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service